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बिखरे मोती करा सकें व उन्हें नैतिक सदाचार से युक्त नैतिक जीवन बिताने के लिए प्रेरित कर सकें । हमें इस कार्य में सफलता भी मिल रही है।
प्रश्न - विद्याध्ययन के लिए आयु की कोई सीमा नहीं है। एक व्यक्ति को जैनतत्त्वज्ञान और व्यवहारिक पूजा विधि आदि सीखने के लिए कितने वर्ष लगेंगे? ___ उत्तर – विद्याध्ययन के लिए ६ वर्ष का कोर्स है। १ वर्ष का उपाध्याय, ३ वर्ष का शास्त्री तथा २ वर्ष का आचार्य। इसमें बोर्ड की सैकेण्ड्री परीक्षा पास किसी भी उम्र के छात्र को लिया जाता है। जो ६ वर्ष का लम्बा समय न दे सकें; वे ४ वर्ष में भी शास्त्री होकर जैनदर्शन में ग्रेजुएट हो सकते हैं।
प्रश्न - उत्तर भारत में आम जनता की भाषा हिन्दी होने से आपके विद्यालय में पढ़ने वाले हिन्दी भाषी विद्यार्थियों को तो भाषा की दृष्टि से सुविधा रहती है; परन्तु दक्षिण के तमिल आदि भाषा-भाषियों के लिए अवसर कम नजर आते हैं। अतः उनके हितार्थ आपकी दृष्टि में क्या किया जा सकता है ?
उत्तर – हमारे महाविद्यालय में महाराष्ट्र और कर्नाटक के १४-१५ छात्र हैं और उन्हें भाषा की कोई विशेष कठिनाई नहीं है, आने के बाद वे एकाध वर्ष के भीतर ही काम चलाने लायक हिन्दी भाषा सीख लेते हैं। आप तमिल भाषा के भी छात्र भेजिए, हम उन्हें पूरा-पूरा सहयोग देंगे और उन्हें जैनदर्शन का उच्चकोटि का विद्वान बनाने का प्रयत्न करेंगे। जबतक नई पीढ़ी में तमिल भाषी २-३ अच्छे विद्वान तैयार नहीं हो जाते, तबतक स्वतन्त्र रूप से तमिलनाडु में कुछ किया जाना संभव नहीं लगता।
प्रश्न – आपके यहाँ धर्मप्रचार के लिए प्रचारक बहुत हैं। क्या आप तमिल प्रान्त के लिए प्रचारक भेजकर वहाँ की कमी को पूरा कर सकते हैं?
उत्तर - यह तो सही है कि हमारे पास प्रचारक बहुत हैं, परन्तु मांग के अनुपात में कम हैं; क्योंकि उत्तर भारत में अध्यात्म सुनने और समझने की रुचि जिस तेजी से जागृत हुई है, उसकी आधी पूर्ति भी हम नहीं कर पा रहे हैं। शिविरों की मांग इस तेजी से है कि ४-४ वर्ष तक उनका नम्बर नहीं आ