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एक इन्टरव्यू : श्री नेमीचन्दजी पाटनी से
81 प्रश्न – उस समय कोई गुंजाइश न रही हो, पर बाद में प्रकाशित करते समय आप ने कोई फेर-बदल कर दी हो तो?
उत्तर - उनके पास इसकी मूलकापी की एक प्रति है। वे उससे मिलान कर लेवें और फिर बतावें कि हमने क्या बदला है, तब तो कोई बात हो। वैसे ही लिखते रहें कि बदल दिया है; बदल दिया है, तो हम क्या करें? आज तक किसी ने यह तो बताया नहीं कि क्या बदला है? वैसे ही कहते रहते हैं, इसके लिए हम क्या करें?
प्रश्न - जब यह चर्चा हुई तब क्या आप वहाँ थे ?
उत्तर - कैसी बात करते हैं? मैं था ही नहीं, बल्कि मैंने उसमें सक्रियता से भाग लिया है। मैं उसमें विद्वानों की हैसियत से आमंत्रित था और एक पक्ष की ओर से चर्चा में सक्रिय भाग ले रहा था। यह सब बातें खानियाँ चर्चा के प्रकाशकीय और संपादकीय में स्पष्ट उल्लिखित हैं। ___ मैं आपको जो बात बता रहा हूँ, वह मात्र सुनी-सुनाई नहीं है; किन्तु आँखों देखी बात है। आदान-प्रदान किये गए समस्त पत्रों पर मेरे हस्ताक्षर हैं। खानियाँ चर्चा में हमने उनके फोटो प्रिंट भी छापे हैं। आप देखियेगा।
प्रश्न - सुना तो यह था कि यह चर्चा दोनों पक्ष के खर्चे से छपेगी, फिर आपने क्यों छापी?
उत्तर – दोनों पक्ष की ओर से छापने के लिए हमने उनसे बहुत आग्रह किया, पर वे टालते ही रहे। .
प्रश्न - वे क्यों टालते रहे? क्या पैसों की .
उत्तर - पैसों की तो क्या बात हो सकती है? ऐसा लगता है कि वे ऐसा अनुभव करते हों कि उनका पक्ष इस चर्चा में कमजोर पड़ गया है। अतः छपाने को उत्सुक नहीं थे।
प्रश्न - तो क्या आप जीत गये हैं?
उत्तर – इसमें जीत हार का प्रश्न ही कहाँ उठता है। पर यह बात सत्य है कि इस चर्चा से सत्य सामने आ गया है। हम सत्य के प्रति आस्थावान हैं और वे उससे कतराते हैं। इसीलिए ऐसी बातें करते हैं।