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________________ (१७ खानियाँ तत्त्वचर्चा एक इन्टरव्यू : श्री नेमीचन्दजी पाटनी से जयपुर (खानियाँ ) में हुई उभयपक्षीय लिखित तत्त्वचर्चा के सम्बन्ध में कुछ लोगों द्वारा जानबूझ कर भ्रम फैलाये जा रहे हैं। इस सम्बन्ध में समाज को सही-सही जानकारी प्राप्त हो इस उद्देश्य से उक्त चर्चा में सक्रिय रूप से भाग लेने वाले श्री नेमीचन्दजी पाटनी से जैनपथ प्रदर्शक' के लिए हमारे स्तम्भ लेखक विवेकी (डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल) द्वारा दिनांक १२-७-७७ को यह इन्टरव्यू लिया गया। आशा है इस इन्टरव्यू से काफी भ्रम साफ होंगे। - सम्पादक "जिनके हस्ताक्षर मौजूद हैं, यदि वे दिग्गज विद्वान भी ऐसी बाते करें तो क्या किया जा सकता है ?" उक्त शब्द श्री नेमीचन्दजी पाटनी ने उस समय कहे, जब उनसे पूछा गया कि आप तो खानियाँ तत्त्वचर्चा के प्रकाशक हैं । क्या उसमें कुछ फेर-बदल कर दिया है? बड़े-बड़े विद्वानों के जैनपत्रों में आजकल ऐसे लेख आ रहे हैं, जिनमें यह आरोप खुलकर लगाये जा रहे हैं। ___ अपनी बात को स्पष्ट करते हुए पाटनीजी बोले - "जयपुर (खानियाँ) में हुई तत्त्वचर्चा की विधि ऐसी रखी गई थी कि उसमें कोई भी व्यक्ति किसी भी प्रकार की फेरबदल कर ही नहीं सकता था। जो भी प्रश्नोत्तर होते थे, वे सभी लिखित रूप से होते थे। मध्यस्थों के माध्यम से उनके हस्ताक्षर होकर आदान-प्रदान किये जाते थे। प्रत्येक प्रश्नोत्तर की तीन प्रतियाँ तैयार होती थीं और उन पर दोनों पक्ष के विद्वानों एवं मध्यस्थों के हस्ताक्षर होते थे। अतः बदला-बदली की कहीं कोई गुंजाइश ही न थी।"
SR No.009446
Book TitleBikhare Moti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla, Yashpal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2001
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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