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________________ लौहपुरुष श्री नेमीचनंद पाटनी 79 पाटनीजी उन्हीं लोगों में से हैं। यही कारण है कि उनकी छत्रछाया में जो भी व्यक्ति व संस्थायें रहीं; वे सुरक्षित रहीं, निरन्तर गतिशील रहीं और प्रगति पथ पर अग्रसर होती रहीं । जिन व्यक्तियों या संस्थाओं ने उनके सलाहमशविरों की उपेक्षा की, वे अपने मार्ग से भटक गईं, उन्हें अपनी साख गवानी पड़ी। उन जैसा सलाहकार, उन जैसा मित्र मिलना भी बड़े भाग्य की बात है। उससे भी बड़ी बात है, उनकी मित्रता और सलाह का पूरा-पूरा लाभ उठा लेना । यद्यपि अब वे अपने में सिमटते जा रहे हैं, अधिक आत्मोन्मुखी होते जा रहे हैं; अभी जो कर रहे हैं, उससे भी हटते जा रहे हैं, नया कुछ करने की तो बात ही नहीं है; तथापि उन्हें लम्बे सामाजिक जीवन का अनुभव हैं, उनके अनुभव का लाभ उठाया जा सकता है, उठाया जाना चाहिए। अधिक क्या, वीतरागी तत्त्वज्ञान के प्रचार-प्रसार में संलग्न संस्थाओं को, व्यक्तियों को उनका मार्गदर्शन चिरकाल तक प्राप्त होता रहे और वे हमारे बीच चिरकाल तक रहकर आत्मसाधना में निरन्तर गतिशील रहें । इस मंगल भावना से विराम लेता हूँ। - सबकुछ सुनिश्चित जिसप्रकार सिनेमा की रील में लम्बाई है, उस लम्बाई में जहाँ जो चित्र स्थित है, वह वहीं रहता है, उसका स्थान परिवर्तन सम्भव नहीं है; उसीप्रकार चलती हुई रोल में कौनसा चित्र किस क्रम से आएगा यह भी निश्चित है, उसमें भी फेर फार सम्भव नहीं है। आगे कौनसा चित्र आएगा भले ही इसका ज्ञान हमें न हो, पर इससे कोई अन्तर नहीं पड़ता, आयेगा वो वह अपने नियमितक्रम में ही । क्रमबद्धपर्याय, पृष्ठ- २३
SR No.009446
Book TitleBikhare Moti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla, Yashpal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2001
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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