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बिखरे मोती के साथ ही जुड़ते हैं; जो भी पद संभालते हैं, पूरी तत्परता के साथ संभालते हैं । जहाँ से हटते हैं, उसे चित्त में से भी हटा देते हैं। जबतक सोनगढ़ से जुड़े रहे, तबतक उसे पूरी तरह संभालते रहे ; वहाँ से हटे तो अब वहाँ के बारे में कुछ सोचने को भी तैयार नहीं हैं। सम्प्रति वे पण्डित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट को पूरी तन्मयता से संभाल रहे हैं।
देश में हजारों संस्थायें हैं और उनके मंत्री भी हैं ही, पर ऐसा मंत्री कहीं भी देखने को नहीं मिलेगा, जो संस्था के छोटे-बड़े सभी कामों में तिल में तेल के समान समाहित हो, घर-परिवार के सब काम छोड़कर संस्था के लिए ही पूर्णतः समर्पित हो, जिसके रोम-रोम में तत्त्वज्ञान समाहित हो और संस्था के प्रत्येक कार्यकलाप पर जिसकी मजबूत पकड़ हो। इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं है कि श्री टोडरमल स्मारक भवन, जयपुर से जो भी कार्य आज हो रहा है, उसका सर्वाधिक श्रेय श्री नेमीचंदजी पाटनी को ही है । इसके प्रत्येक कार्य पर उनके दृढ़ व्यक्तित्व की छाप स्पष्ट नजर आती है। __ कुछ लोगों की दृष्टि मात्र कमियाँ ही देख पाती है, उन्हें प्रत्येक कार्य में कुछ न कुछ खोट ही नजर आती है। ऐसे लोग सदा असन्तुष्ट ही बने रहते हैं। कुछ लोग मात्र अच्छाइयाँ ही देखते हैं, उन्हें कहीं कोई खराबी दिखाई ही नहीं देती है। ऐसे लोग भी समाज के लिए विशेष उपयोगी सिद्ध नहीं होते; क्योंकि उनके संरक्षण में कभी-कभी बड़े-बड़े अपराध भी पनपते रहते हैं, पर उन्हें कुछ लगता ही नहीं। परिणामस्वरूप धर्म और धर्मायतन बदनाम हो जाते हैं।
ऐसे लोग बहुत कम होते हैं, जो व्यक्तियों की अच्छाइयों और बुराइयों की जड़ तक पहुँचने की क्षमता रखते हैं, बुराइयों पर अंकुश लगाना जानते हैं, अच्छाइयों को प्रोत्साहित करना जानते हैं और निंदा प्रशंसा से अप्रभावित रहकर व्यक्तियों को, मिशन को, संस्थाओं को अपने सुनिश्चित पथ पर अडिग रखते हैं, झंझावातों से बचाये रखते हैं, गलत लोगों से सुरक्षित रखते हैं एवं सन्मार्ग पर निरन्तर गतिशील भी रखते हैं।