________________
72
बिखरे मोती लगता है कि जैसे मैं अपने बारे में ही कुछ लिखने जा रहा हूँ, तथापि जब आध्यात्मिकसत्पुरुष पूज्य श्री कानजीस्वामी द्वारा प्रस्फुटित आध्यात्मिक क्रान्ति में उनके योगदान की चर्चा हो रही हो, तब भी कुछ न लिखने को भी मन बिल्कुल तैयार नहीं है। ___ यह तो सर्वविदित ही है कि आध्यात्मिकसत्पुरुष पूज्य श्रीकानजीस्वामी
और उनकी आध्यात्मिक क्रान्ति का परिचय मूल दिगम्बर जैन समाज को सर्वप्रथम उनकी तीर्थयात्राओं से ही प्राप्त हुआ था। इन तीर्थयात्राओं का सफल संचालन आदरणीय श्री नेमीचंदजी पाटनी ने ही किया था। इन यात्राओं ने स्वामीजी को तो मूल दिगम्बर समाज तक पहुँचाया ही, साथ ही पाटनीजी के दृढ़ और कर्मठ व्यक्तित्व को भी उजागर किया।
समयसार के भक्त स्वामीजी समय के भी पाबन्द थे। उन्हें जितना प्रिय समयसार था, उतना ही प्रिय समय पर सब कार्य करना भी था। चाहे घर हो या बाहर - स्वामीजी के आहार, विहार, प्रवचन, चर्चा सभी का समय बारहमासी सुनिश्चित ही था, उसमें कुछ भी फेरफार उनकी प्रकृति को स्वीकार नहीं था। हजारों यात्रियों के साथ की जानेवाली यात्रा में यह सब निभाना कोई आसान काम नहीं था, पर पाटनीजी की ही हिम्मत थी कि उन्होंने सबकुछ व्यवस्थित किया और उनकी यात्राओं का सफल संचालन किया। उससमय पाटनीजी ४०-४५ वर्ष के ही रहे होंगे, पर उनके व्यक्तित्व में जिस प्रौढ़ता के दर्शन होते थे, वह इस उम्र में बहुत कम देखने को मिलती है।
उससमय पाटनीजी की यह दृढ़ता जगप्रसिद्ध हो रही थी कि उन्होंने जो भी कार्यक्रम निश्चित कर दिया, उसमें फेरफार कराना संभव नहीं है। ऐसी दृढ़ता के बिना इतने बड़े संघ को सुव्यवस्थित चलाना संभव भी तो नहीं था। ___ बात सन् १९५६ की है, जब मैं २०-२१ वर्ष का ही था, पर क्रमबद्धपर्याय के प्रति अडिग आस्था मेरे जीवन का अंग बन चुकी थी और इसीकारण स्वामीजी के प्रति भी श्रद्धा जागृत हो गई थी। अभी तक उन्हें देखा नहीं था, पर उनके साहित्य का अवलोकन अवश्य किया था। साल-छह माह पहले ही रुचि जागृत हुई थी; अत: नया-नया जोश था।