________________
73
लौहपुरुष श्री नेमीचनंद पाटनी
जब यह पता चला कि स्वामीजी ससंघ ललितपुर से सोनागिर जा रहे हैं और वे बबीना से ही पास होने वाले हैं तो हमारी यह भावना प्रबल हो उठी कि बबीना में उनका स्वागत किया जाय और उनके प्रवचन का लाभ भी लिया जाय। उस समय हम बबीना में ही रहते थे। ___ तदर्थ पाटनीजी से सम्पर्क किया गया, पर पाटनीजी की जो प्रसिद्धि थी, वह सच साबित हुई, पर इस असफलता ने हमारे निश्चय को और भी दृढ़ कर दिया। ___ हमने सड़क के किनारे स्टेज बनाया, बिछात बिछाई, आवश्यक छाया की
और बबीना की सम्पूर्ण जैन समाज को वहाँ एकत्रित कर लिया और स्वामीजी के आने की प्रतीक्षा करने लगे। जबतक स्वामीजी नहीं आये, तबतक भक्ति
और प्रवचन के माध्यम से सभी को व्यस्त रखा। ___ जब स्वामीजी की गाड़ी व यात्रियों की बसें दिखाई दी तो सभी लोग झंडे लेकर बीच सड़क पर खड़े हो गये। पाटनीजी बताते हैं कि उस समय उस एरिया में डाकुओं का बड़ा डर था। अत: बीच सड़क पर इतनी भीड़ देखकर वे सशंकित हो उठे थे।
स्वामीजी की गाड़ी आयी और हमने उन्हें रोक लिया। उन्हें सारी स्थिति बताई और आधा घंटा प्रवचन करने का अनुरोध किया कि इतने में ही पाटनीजी अपनी गाड़ी से उतर कर आ गये और रोकने के इस तरीके पर अपनी नाराजगी व्यक्त करने लगे, पर स्वामीजी तबतक गाड़ी से उतर चुके थे और स्टेज की तरफ चल दिये थे। इस तरह पाटनीजी की दृढ़ता अपनी जगह कायम रही और हमारी भावना भी फलीभूत हो गई। ___ पीछे-पीछे आने वाली संघ की बसें भी खड़ी होने लगी और उनके यात्री उतरने लगे। सभी को संतरे आदि फल समर्पित किये गये और स्वामीजी का भी स्वागत किया गया। मुझे अच्छी तरह याद है कि स्वामीजी के स्वागत में दो शब्द भी मैंने ही बोले थे। स्वामीजी ने मांगलिक किया और स्वामीजी सहित सम्पूर्ण संघ सोनागिर को रवाना हो गया। हम भी सामान समेट कर दुकान व घर का ताला बंद करके पूरे परिवार सहित उसी दिन सोनागिर पहुँच गये।