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________________ 70 बिखरे मोती वैसे तो अनेक अभिन्न मित्र और अनन्य सहयोगी आज भी विद्यमान हैं, जिनके सहयोग के बिना इस महान कार्य का संचालन संभव नहीं है; पर उनकी चर्चा करने का न तो यह समय ही है और न वह आवश्यक ही है; पर दिवंगत आत्माओं में पूज्य गुरुदेवश्री के अतिरिक्त एक और ऐसा नाम है, जो सदा ही मेरी स्मृति-पटल पर छाया रहता है। वह हैं आदरणीय विद्वद्वर्य एवं अनन्यसाथी पण्डित श्री बाबूभाई मेहता, जो मात्र मेरे ही नहीं, अनेकों के मित्र थे, गोदीकाजी के भी अभिन्न हृदय और अनन्य सहयोगी थे। सबको साथ लेकर चलने की जो क्षमता उनमें थी, वह अत्यन्त विरल है। जब-जब विघटन के प्रसंग आते हैं तो मुझे उनकी बहुत याद आती है कि यदि आज वे होते तो हम सबको यह चिन्ता न करनी पड़ती। लोगों का विश्वास प्राप्त करना कोई आसान काम तो नहीं है, इसके लिए सहृदय होने के साथ-साथ सहृदय दिखना भी अत्यन्त आवश्यक है । आदरणीय बाबूभाईजी सहृदय थे भी और दिखते भी थे। जो भी हो, आज हम जिस किसी भी स्थिति में क्यों न हों; पर हमें इस जिम्मेवारी का निर्वाह करना ही होगा। पूज्य गुरुदेवश्री, बाबूभाई एवं गोदीकाजी के अथक प्रयासों से जो भी आध्यात्मिक वातावरण आज हमें उपलब्ध है, उसे टिकाये रखने और आगे बढ़ाने का महान उत्तरदायित्व हम सबके कंधों पर आज आ पड़ा है, जिसे निभाने का काम हम सबको मिल-जुलकर करना है। यदि विशाल हृदय और दूरदृष्टि से हमने इसका निर्वाह नहीं किया तो इसके परिणाम मात्र हमें ही नहीं भुगतने होंगे, अपितु इससे सम्पूर्ण वीतरागी तत्त्वज्ञान की यह निर्मल धारा भी प्रभावित होगी। __ वीतरागी तत्त्वज्ञान की यह निर्मलधारा निरन्तर बहती रहे, दिन-दूनी रातचौगुनी बढ़ती रहे;- यह बात हमारी मंगलकामनाओं तक ही सीमित न रहे, अपितु एक ऐतिहासिक सत्य बन जावे - इसके लिए समर्पित भाव से निरन्तर प्रयत्नशील रहना हम सबका ऐतिहासिक दायित्व है। इस ऐतिहासिक उत्तरदायित्व को संभालने का संकल्प आज हम सब मिलकर करें। यह संकल्प ही उनके प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी। इस दिशा में निरन्तर सक्रिय रहने के संकल्प के साथ ही मैं श्री गोदीकाजी को अपने श्रद्धासुमन समर्पित करता हूँ।
SR No.009446
Book TitleBikhare Moti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla, Yashpal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2001
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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