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________________ 46 बिखरे मोती ____ आदरणीय बापूजी सादा जीवन एवं उच्च विचार' के मूर्तिमन्त स्वरूप हैं। सोनगढ़ में आप उनके निवास स्थान को देखिए। आपको विश्वास ही न होगा कि इस तेजस्वी कर्मठ महापुरुष का आवास यही है। न पलंग, न सोफासेट, न कुर्सी और न टेबल-सी दिखने वाली टेबल। बस! एक साधारण-सी खटिया, दो मुड्ढ़े, एक चटाई और १.५ x २.५ की एक छोटी-सी टेबल। स्वाध्याय के लिए कुछ समयसारादि जैसे ग्रन्थराज, परिग्रह के नाम पर मात्र इतना ही। पहिनावा की भी क्या बात करें? बिना प्रेस किए मोटी खादी की धोती, कुर्ता, टोपी तथा बाबा आदम के जमाने की एकाध जाकिट .... बस! क्या कहा आपने? फिर आगन्तुकों को कहाँ बिठाते होंगे? चटाई पर। क्यों? क्योंकि उनके पास आते हैं मात्र उनसे तत्त्वचर्चा करनेवाले जिज्ञासु लोग। उन्हें बिठाने के लिए उच्चासन की क्या आवश्यकता है? वे तो सबके बापूजी हैं न? देश को एक बापू मिला था, जिसका नाम था महात्मा गाँधी, मोहनचन्द करमचन्द गाँधी। सोनगढ़ के श्रद्धालुओं को भी एक बापू मिल गये हैं, जिनका नाम है, रामजीभाई माणेकचन्द दोशी। खान-पान । खान-पान की क्या बात करना? पचासों वर्षों से जिसने न कभी चीनी चखी है और न कभी गुड़। रूखीसूखी रोटी-दाल-साग, बस यही भोजन है इस महापुरुष का। __ अपने ध्येय को कभी न भूलनेवाले बापूजी का हृदय नारियल के समान बाहर से कठोर दीखने पर भी अन्दर से कोमल है। एकबार सिद्धक्षेत्र गिरनार के एक केस की फाइल उन्हें दिखाने कुछ समाज के नेता उनके पास गये। उनसे विनयपूर्वक आग्रह करके फाइल का अध्ययन कर सलाह देने का निवेदन किया। पर उन्होंने गुस्से में फाइल फेंक दी और बोले - "क्या मैंने इसलिए वकालत छोड़ी है? मैंने तो समयसारादि ग्रन्थराजों के स्वाध्याय के लिए वकालत छोड़ी है, न कि ........"
SR No.009446
Book TitleBikhare Moti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla, Yashpal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2001
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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