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________________ आत्मधर्म के आद्य सम्पादक (जैनपथप्रदर्शक के, श्री रामजीभाई जन्म शताब्दी विशेषांक, १ अगस्त, १९८२ में से) आत्मधर्म के आद्य सम्पादक, श्री दिगम्बर जैन स्वाध्याय मन्दिर ट्रस्ट के आजीवन अध्यक्ष आदरणीय विद्वद्वर्य श्री रामजीभाई माणेकचन्द दोशी आगामी गणेश चतुर्थी (भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी) को अपनी इस मनुष्य पर्याय के ९९ वर्ष पूर्ण कर रहे हैं, शताब्दी वर्ष में प्रवेश कर रहे हैं। यदि गर्भ के भी ९ माह गिन लिए जावें तो सौ वर्ष पूरे होने में मात्र तीन माह शेष रहे हैं। ___ एक तो जनसामान्य का इस आयु को स्पर्श कर पाना ही सहज सम्भव नहीं है; यदि कोई भाग्यशाली इतनी उम्र पा भी ले तो भी इस उम्र में इतनी सक्रियता, सजगता, पाँचों इन्द्रियों एवं मन की ऐसी निरोगता की उपलब्धि असंभव नहीं तो दुर्लभ अवश्य है; जैसी कि आदरणीय बापूजी श्री रामजीभाई में इस उम्र में भी पाई जाती है। यदि कोई अन्य उल्लेखनीय गुण न भी हो, तो भी सौ वर्ष की आयु की उपलब्धि, अकेली स्वयं उल्लेखनीय है, चर्चनीय है, अभिनन्दनीय भी है; फिर बापूजी श्री रामजीभाई में तो साथ में अनेक अभिनन्दनीय, उल्लेखनीय विशेषताएँ भी हैं। अत: उनका जन्म शताब्दी महोत्सव जितना भी अधिक उत्साह के साथ मनाया जाय, कम है। काश! हम इसे और भी विशाल पैमाने पर मना सकते तो कितना अच्छा होता। अस्तु . । यद्यपि उन्हें इसप्रकार के उत्सवों, अभिनन्दनों की रंचमात्र भी अपेक्षा नहीं है - यह बात मैं बहुत अच्छी तरह जानता हूँ; तथापि इसप्रकार के आयोजनों की आवश्यकता से, उपयोगिता से इन्कार नहीं किया जा सकता। यदि इसप्रकार के प्रसंग पर पूज्य गुरुदेवश्री भी विद्यमान होते तो कुछ बात ही और होती।
SR No.009446
Book TitleBikhare Moti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla, Yashpal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2001
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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