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________________ 44 बिखरे मोती संसार से उदास, धुन के धनी, निरन्तर आत्मानुभव और स्वाध्याय में मग्न, सबके प्रति समताभाव एवं करुणाभाव रखनेवाले, विनम्र, पर सिद्धांतों की कीमत पर कभी न झुकने वाले, अत्यन्त निस्पृही एवं दृढ़ मनस्वी, गणधर जैसे विवेक के धनी, वज्र से भी कठोर, पुष्प से भी कोमल उनका आन्तरिक व्यक्तित्व बड़े-बड़े मनीषियों के आकर्षण का केन्द्र बना रहता था । यद्यपि वे आज हमारे बीच नहीं हैं, पर उनकी वाणी पुस्तकों के रूप में ही नहीं, उनकी आवाज टेपों में हमें उपलब्ध है । व्यक्ति वाणी से ही सबकुछ नहीं कहता, उसकी मुद्रा, उसके हाव-भाव भी बहुत कुछ कहते हैं । भावों के सम्प्रेषण में अकेली वाणी की ही आवश्यकता नहीं होती, अपितु उसके साथ-साथ हाव-भावों का भी अपना एक महत्व होता है । स्वामीजी की बात भी उनकी वाणी के साथ-साथ उनके हाव-भावों से भी व्यक्त होती थी । जिन लोगों ने गुरुदेव श्री को वर्षों सुना है, उनके प्रवचनों का लाभ उठाया है, उन्हें निकट से देखा है, उन्हें तो उनके टेपों से पूरा-पूरा लाभ प्राप्त हो सकता है; क्योंकि उनकी वाणी सुनकर वे सहज ही अनुमान कर सकते हैं कि यह बात कहते समय गुरुदेवश्री की मुखमुद्रा इसप्रकार की रही होगी। पर वे लोग क्या करें, जिन्होंने अपने अभाग्य से प्रवचनों को साक्षात् उनके मुख से नहीं सुना है, उनके समागम का लाभ जिन्हें प्राप्त नहीं हुआ है, उन लोगों के लिये भी निराश होने की आवश्यकता नहीं है; क्योंकि हम उस युग में पैदा हुये हैं कि जिसमें वी. डी. ओ. टेपों द्वारा हम गुरुदेवश्री को चलते-फिरते, प्रवचन करते देख सकते हैं, सुन सकते हैं। भगवान महावीर या कुन्दकुन्दाचार्य के युगों की अपेक्षा यह युग लाख बुरा हो, पर इस दृष्टि से तो अच्छा ही कहा जायेगा कि आज हमें भगवान महावीर एवं कुन्दकुन्दादि आचार्यों के चलतेफिरते बोलते वास्तविक चित्र भी उपलब्ध नहीं हैं, किन्तु पूज्य गुरुदेवश्री कानजीस्वामी वी.डी.ओ. टेपों के माध्यम से उपलब्ध हैं। यह सहज सुविधा जो हमें प्राप्त हुई है, इसका भरपूर लाभ उठाना है।
SR No.009446
Book TitleBikhare Moti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla, Yashpal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2001
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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