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निराश होने की आवश्यकता नहीं है (जैनपथप्रदर्शक, पूज्य कानजी स्वामी स्मृति विशेषांक, १६ नवम्बर १९८१ से) __पूज्य गुरुदेवश्री कानजीस्वामी यद्यपि आज हमारे बीच नहीं हैं, तथापि उनका अद्भुत व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व आज भी हमारा पथ आलोकित कर रहा है।
वे ऐसे अद्भुत व्यक्तित्व के धनी थे कि जो व्यक्ति एकबार भी उनके सम्पर्क में आया, उनसे प्रभावित हुये बिना नहीं रहा। सम्बोधनों से संयुक्त उनकी वज्रवाणी में ऐसा जादू था कि जो सुनता, वही डोलने लगता था। बुद्धि को विचार के लिये मजबूर कर देने वाली उनकी वज्रवाणी अपने स्नेहसिक्त मृदुल सम्बोधनों से हृदय को भी आन्दोलित कर देती थी। ___ पुण्य और पवित्रता का ऐसा सहज संयोग कलिकाल में सहज ही सम्भव नहीं है । जिनके जीवन में पवित्रता पाई जाती है, कोई उनकी बात नहीं सुनता
और जिनके समक्ष लाखों मानव झुकते हैं, जिनको सर्व सुविधायें सहज उपलब्ध हैं; वे पवित्रता से बहुत दूर दिखाई देते हैं। पूज्य गुरुदेवश्री कानजीस्वामी में पुण्य और पवित्रता का सहज संयोग था, उनमें सोना सुगन्धित हो उठा था।
वे अन्तर्बाह्य व्यक्तित्व के धनी महापुरुष थे। एक ओर जहाँ स्वच्छ शुभ्र श्वेत परिधान से ढकी हरदम गोरी-भूरी विराटकाया, उस पर उगते सूर्य-सा प्रभासम्पन्न उन्नत भाल तथा कभी अन्तर्मग्न गुरुगम्भीर एवं कभी अन्तर की आनन्द-हिलोर से खिलखिलाता गुलाब के विकसित पुष्प सदृश ब्रह्मतेज से दैदीप्यमान मुखमण्डल व्याख्यान में उनकी वाणी से कुछ भी न समझने वाले हजारों श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किये रहता था; वहीं दूसरी ओर स्वभाव से सरल,