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________________ 42 बिखरे मोती ___'अब क्या होगा?' होगा क्या? दुनिया तो अपनी गति से चलती ही रहती है, वह तो कभी रुकती नहीं। बड़े-बड़े लोग आये और चले गये, पर यह दुनिया तो निरन्तर चल ही रही है, इसकी गति में कहाँ रुकावट है? जगत की बात ही क्यों सोचते हो? यह सोचो न कि हम सबको भी तो एक दिन इसीप्रकार चले जाना है। ___ 'अब क्या होगा?' इस किंकर्तव्यविमूढ़ता की स्थिति को तोड़ो न! छोड़ो न इस व्यर्थ के विकल्प को और चल पड़ो उस रास्ते पर जो गुरुदेवश्री ने बताया है और जगत को बताओ वह रास्ता जो गुरुदेवश्री ने आपको - हम सबको बताया है। भगवान महावीर के चले जाने पर गौतम गणधर रोने नहीं बैठे थे, अपितु महावीर की बताई राह पर चलकर स्वयं महावीर (सर्वज्ञ) बन गये थे। यदि हम गुरुदेवश्री के सच्चे शिष्य हैं तो हमें गुरुदेवश्री के चले जाने पर वही राह अपनानी चाहिए, जो महावीर के अन्यतम शिष्य गौतम ने अपनाई थी। गुरुदेवश्री के अभाव में उदासी तो सहज है, पर निराशा का कोई स्थान नहीं होना चाहिए। उठो! मन को यों निराश न करो और चल पड़ो उस राह पर... | बातों से नहीं, आवो! हम सब मिलकर अपने कार्यों से दुनिया को इस प्रश्न का उत्तर दें, दुनिया की इस शंका का समाधान प्रस्तुत करें कि 'अब क्या होगा?' . आत्मा के अनुभव की बात ही मुख्य है। जिस प्रवचनकार के प्रवचन में आत्महित की प्रेरणा न हो, आत्मानुभव करने पर बल न हो; वह जिनवाणी का प्रवचनकार ही नहीं है । सीधी सरल भाषा में भगवान आत्मा की बात समझाना, भगवान आत्मा के दर्शन करने की प्रेरणा देना, अनुभव करने की प्रेरणा देना, आत्मा में ही समा जाने की प्रेरणा देना ही सच्चा प्रवचन है। गागर में सागर, पृष्ठ ३७-३८
SR No.009446
Book TitleBikhare Moti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla, Yashpal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2001
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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