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अब क्या होगा?
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बजा दिया। क्या हम सब मिलकर भी उनकी थाती को न संभाल सकेंगे? हम सबके समक्ष यह एक चुनौती है। इस चुनौती को आज हमें स्वीकार करना है ।
हम उन गुरु के शिष्य हैं जिन्होंने कभी पर की ओर नहीं देखा, मुड़कर पीछे नहीं देखा, जिन्होंने मात्र स्वयं को देखा और स्वयं के बल पर ही चल पड़े। वे जहाँ खड़े हो गये, वह स्थान तीर्थ बन गया; वे जिधर चल पड़े, उधर लाखों लोग चल पड़े। वे भागीरथ थे, जो अपने भागीरथ पुरुषार्थ द्वारा अध्यात्म-भागीरथी को हम तक लाये और जिन्होंने सारे जगत को उसमें डूबकी लगाने के लिए पुकारा । हम भी कुछ कम नहीं, उस भागीरथी की निर्मल जलधारा को हम जन-जन तक पहुँचायेंगे । वे अकेले थे, पर तूफान थे; हम चार लाख से भी अधिक हैं, पर वह तूफानी वेग हममें कहाँ ? न सही तूफानी वेग से, पर चलेंगे तो हम भी.... ।
'अब क्या होगा?' पूछने वालों को हम विश्वास दिलाना चाहते हैं कि वही होगा जो गुरुदेवश्री ने बताया है, चलाया है, जो अभी चलता है, अभी तक चलता रहा है, वह अब भी चलता रहेगा । उसीप्रकार चलता रहेगा, उसमें कोई कमी नहीं आयेगी, हो सकता है कि उसकी चाल में और भी तेजी आ जावे । पर भाई.... गुरुदेव तो गये सो गये, उन्हें तो कहाँ से लायें ?
पर एक बात यह भी तो है कि हम जिस युग में पैदा हुए हैं, वह युग लाख बुरा हो, पर इसमें वे सुविधायें हैं, जो महावीर के, कुन्दकुन्द के, अमृतचन्द्र के जमाने में नहीं थीं । आज गुरुदेव के हजारों घण्टों के टेप हमारे पास हैं, जिन्हें हम कभी भी उन्हीं की आवाज में सुन सकते हैं; घण्टों के उनके बी.डी.ओ. टेप (बोलती फिल्म ) हैं, जिनके माध्यम से हम गुरुदेव श्री को चलते-फिरते देख सकते हैं, बोलते हुए देख सकते हैं, सुन सकते हैं; बस, वे सदेह - सचेतन हमारे पास नहीं है, पर महावीर की, कुन्दकुन्द की, अमृतचन्द्र की तो आवाज भी हमारे पास नहीं, चित्र भी हमारे पास नहीं, चलती-फिरती, बोलती फिल्म की बात तो बहुत दूर की कल्पना है।
इस अर्थ में हम बड़े भाग्यशाली हैं। अब तक तो हमें उनका साक्षात् लाभ मिलता था, पर अब हमें एकलव्य बनना होगा। उनके अचेतन चित्रों से, साहित्य से, टेप से, चेतन शिष्यों से देशना प्राप्त करनी होगी ।