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________________ ८ अब क्या होगा? ( आत्मधर्म फरवरी १९८१ में से ) पूज्य गुरुदेव श्री कानजी स्वामी के देहावसान के बाद 'अब क्या होगा?' यह प्रश्न आज सभी की जबान पर है। यह ज्वलन्त प्रश्न उनके हृदयों को तो आन्दोलित किये ही है, जो उनमें अगाध श्रद्धा रखते थे, उनके अनुगामी थे; पर मध्यस्थ एवं प्रतिकूलजन भी टकटकी लगाकर देख रहे हैं कि देखें अब क्या होता है? कोई कहे; चाहे न कहे, पर । हमारे कार्यालय में सैकड़ों पत्र इसप्रकार के आये हैं, जिनमें इसप्रकार की जिज्ञासा प्रगट की गई है। कुछ लोगों ने तो अनेक प्रकार के सुझाव भी दिये हैं, आशंकायें प्रगट की हैं, उपदेश भी दिये हैं, आदेश भी दिये हैं। चर्चाओं में, पत्रिकाओं में श्रद्धांजलियों में, संस्मरणों में भी इसप्रकार के भाव प्रगट किये गये हैं। , सब कुछ मिलाकर यही प्रतीत होता है कि समाज के सामने स्वामीजी के अभाव से हुई रिक्तता मुँह बाए खड़ी है, जिसकी पूर्ति असंभव दिखाई दे रही है और यह प्रश्न समाज को मथे डाल रहा है कि 'अब क्या होगा?' बात दूसरों की ही नहीं, हम सबकी भी तो यही स्थिति है । पर बात यह है कि जो हो गया, सो तो हो ही गया, अब उसे बदलना सम्भव है नहीं । गुरुदेव श्री के स्थान की पूर्ति की कल्पना भी काल्पनिक ही है; क्योंकि उनके स्थान की पूर्ति भी मात्र वे ही कर सकते थे। गुरुदेव तो गए, न तो उन्हें वापिस ही लाया जा सकता है और न नए गुरुदेव ही बनाए जा सकते हैं । गुरुदेव बनते हैं, बनाए नहीं जाते । जो बनाने से बनते हैं, या बनाये जाते हैं, वे गुरु नहीं, महंत होते हैं, मठाधीश होते हैं। उनसे गुरुगम नहीं मिलता, गुरुडम चलता है ।
SR No.009446
Book TitleBikhare Moti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla, Yashpal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2001
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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