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बिखरे मोती जव हमारे घर में किसी बुजुर्ग का देहावसान हो जाता है, तो घर वाले रोते हैं, बिलखते हैं; आगन्तुक आते हैं और समझाते हैं, समझाकर चले जाते हैं; परन्तु घर का काम घर वालों को ही संभालना पड़ता है, समझाने वाले नहीं संभालते। काम समझने वालों को संभालना होगा, समझाने वालों को नहीं। समझाने वाले तो समझाकर चले जावेंगे, पर ... |
गुरुदेवश्री का अवसान किसी एक घर के बुजुर्ग का अवसान नहीं है। वे हम सभी के धर्मपिता थे। उनका अवसान हम सबके धर्मपिता का अवसान है; इस बात का अनुभव हम सब को करना होगा। कहीं ऐसा न हो जाय कि आप समझाने वाले बन जायें और समझाकर चलते बनें। हम सब उनके उत्तराधिकारी हैं; अत: उनके वारसे को संभालने का उत्तरदायित्व भी सभी का है। पर भाई ! उत्तरदायित्व किसका? जो समझे, अनुभव करे, उसका; जो
अनुभव ही न करे, उसको क्या कहें? ___ यह समय दूसरों को उपदेश देने का नहीं, आरोप-प्रत्यारोप लगाने का भी नहीं, मिलजुलकर काम करने का है। यह समय चुनौती का समय है, जिसे हमें और आपको मिलकर स्वीकार करना है। ____ आओ, हम सब मिलकर संकल्प करें, सन्नद्ध हों और एक मन से - एक मत से जुट जायें तथा बता दें कि गुरुदेवश्री का अवसान नहीं हुआ है । वे अपने अनुयायियों के रूप में, वाणी के रूप में, आज भी विद्यमान हैं और उनके द्वारा आरम्भ किया गया मिशन उसी जोर-शोर के साथ चल रहा है, बढ़ रहा है, बढ़े चल रहा है।
प्रशंसा मानव-स्वभाव की एक ऐसी कमजोरी है कि जिससे बड़ेबड़े ज्ञानी भी नहीं बच पाते हैं । निन्दा की आँच भी जिसे पिघला नहीं पाती, प्रशंसा की ठंडक उसे छार-छार कर देती है।
आप कुछ भी कहो, पृष्ठ-६८