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बिखरे मोती प्रकाश व प्रताप खुले मैदान में अपनी जैसी प्रभा बिखेरता है, वैसी प्रभा गहन गुफाओं में नहीं दिखाई देती; तथापि गहन गुफा के अन्तिम कोने में भी यह तो परिलक्षित हो ही जाता है कि अभी दिन है; दिनकर की आभा वहाँ भी पहुँच ही जाती है। ___ उसीप्रकार हे गुरुदेव! आपके प्रभाव और प्रताप ने उन लोगों के हृदय और बुद्धि को तो आलोकित किया ही है, जो खुले मैदानों के समान खुले दिमाग के लोग थे; पर साथ में उन लोगों को भी प्रभावित किया है, जो आपसे किसी कारण असहमत थे, विरोध भाव रखते थे या फिर गहन अंधकार में थे।
जिसने जीवनभर आपका विरोध किया - ऐसा जैनगजट (९-१२१९८०) पत्र भी आपके निधन पर अपने सम्पादकीय में लिखता है - __ "उन्होंने अपने जीवन में करीब ६५ पंचकल्याणक प्रतिष्ठा व ३५ वेदीप्रतिष्ठायें करवाईं और श्वेताम्बर बन्धुओं को दिगम्बरी बनाया। समयसार व मोक्षमार्गप्रकाशक जैसे ग्रन्थों के पठन-पाठन की लहर समाज में दौड़ाई तथा स्वाध्याय के प्रचार का बिगुल बजा दिया। विरोध होता रहा, लेकिन विरोध. को सहते हुए दिगम्बर धर्म के प्रचार या प्रसार में किसी भी प्रकार की कसर उठा नहीं रखी। ___ आबाल-वृद्धों में दिगम्बर धर्म का प्रचार किया और रात्रिभोजन, जमीकन्द आदि का त्याग उनके प्रभाव से स्वतः उनके अनुयायी करते गए।
देश में सोनगढ़ एक प्रकार का प्रसिद्ध स्थान बन गया, जहाँ से उन्होंने जिनवाणी का तन-मन से जीवनपर्यन्त साधना करने के साथ ही साथ देश में यत्र-तत्र-सर्वत्र प्रचार किया। शिक्षण शिविर के द्वारा एक नई दिशा देकर धर्मप्रचार की एक अद्भुत योजना समाज को दी।
प्राय: यह देखा गया है कि सम्प्रदाय बदलने वाले अन्त में पथभ्रष्ट भी होते रहे हैं; लेकिन स्वामीजी सदा लोहपुरुष बनकर रहे।
स्वामीजी के उठ जाने से वास्तव में एक महान् प्रतिभासम्पन्न व पुण्यात्मा आध्यात्मिक वक्ता का सदा के लिए अभाव हो गया है।