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________________ ७ सूरज डूब गया ( आत्मधर्म जनवरी १९८१ में से ) पूज्य गुरुदेव श्री के निधन से लाखों आत्मार्थियों के हृदय-कमलों को खिला देने वाला, मोह - तिमिर को हटा देने वाला, प्रकाशपुंज सम्यग्ज्ञान का सूरज डूब गया है। - सूरज तो संध्या को डूबता है, पर प्रात:काल फिर उग आता है; किन्तु यह सूरज तो डूबा, सो डूबा | अब ऐसा प्रात: काल कभी न होगा, जब हमें इस प्रतापवंत - प्रकाशपुंज सूरज के दर्शन हो सकेंगे। यद्यपि उनके देहावसान की तुलना इस अर्थ में सूर्यास्त से नहीं की जा सकती, तथापि उस अनुपम ज्ञान के घन-पिण्ड और आनन्द के कन्द की उपमा आखिर दें तो किससे दें? एक सूरज ही तो ऐसा है, जिससे इस प्रकाशपुंज की तुलना की जा सकती है। स्वामीजी के प्रताप और प्रकाश दोनों ही सूरज के प्रकाश और प्रताप से किसी प्रकार कम न थे। स्वामीजी भी अपने क्षेत्र के एक सूरज ही तो थे । सूर्य की प्रभा तो इस लौकिक अंधकार को ही दूर करती है, पर आपकी ज्ञानप्रभा ने वाणीरूपी किरणों ने तो आत्मार्थी जिज्ञासुओं के हृदयों के अज्ञानान्धकार को दूर किया है। लोकान्धकार दूर करने वाला यह सूर्य तो लौकिक है, पर आप तो लोकोत्तर मार्ग में व्याप्त अंधकार के विनाशक थे, अतः आप अलौकिक सूर्य थे । जिसप्रकार सूर्य का प्रताप और प्रकाश गहरी गुफाओं के निविड़ अंधकार को भी चीरता हुआ उनके अन्तिम छोर को भी पा लेता है । यद्यपि सूर्य का
SR No.009446
Book TitleBikhare Moti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla, Yashpal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2001
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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