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________________ 34 बिखरे मोती यह तो दुनियाँ की रीति है कि जब सूर्य अस्त हो जाता है तो लोग घरों में दीपक जलाते ही हैं। गलियों और चौराहों पर भी समुचित प्रकाश की व्यवस्था की जाती है। क्या तुम इस जग-रीत को भी न निभा सकोगे? ध्यान रखो, यदि इस सामान्य जग-रीति का भी निर्वाह न कर सके तो इतिहास तुम्हें क्षमा नहीं करेगा। आज तुम्हारे कंधों पर ऐतिहासिक उत्तरदायित्व है; जो पाया है, उसे दूसरों तक पहुँचाने का; जो सीखा है, उसे जीवन में उतारने का। औरों के समान तुम भी दो आँसू बहाकर, दो शब्द श्रद्धांजलि के समर्पित कर अपने कर्तव्य की इतिश्री मत समझ लेना। नहीं, नहीं; ऐसा नहीं होगा। हम सब मिलकर पूज्य गुरुदेवश्री द्वारा आरंभ किये गये इस मिशन को आगे बढ़ायेंगे। इस भावना और संकल्प के साथ - - वास्तविक कर्तव्य सामाजिक संगठन और शान्ति बनाए रखना और सामाजिक रूढ़ियों से मुक्त प्रगतिशील समाज की स्थापना हो तो इस बहुमूल्य नरभव की सार्थकता नहीं है। इस मानव जीवन में तो आध्यात्मिक सत्य को खोजकर, पाकर, आत्मिक शान्ति प्राप्त करने का मार्ग प्रशस्त करना ही वास्तविक कर्तव्य है। आध्यात्मिक सत्य में भी पर्यायगत सत्य को जानना तो है, पर उसमें उलझना नहीं है, उसे तो मात्र जानना है; पर कालिक परमसत्य को, परमतत्त्व को मात्र खोजना ही नहीं है, जानना भी है, उसी में जमना है, रमना है, उसी में समा जाना है, उसीरूप हो जाना है। सत्य की खोज, पृष्ठ-२५२
SR No.009446
Book TitleBikhare Moti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla, Yashpal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2001
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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