SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 41
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हा गुरुदेव ! अब कौन.....? 33 तथा वह भटक न जाय इस भावना से की जाने वाली मृदुल अनुशंसा से भी सब परिचित हैं । क्षयोपशम ज्ञान के अभिमान में भी कोई रुक न जाय - तदर्थ उसकी असलियत से भी अब कौन परिचित करायेगा ? तत्त्वप्रचार की दिशा में किये गये प्रयत्नों को भी अब कौन सराहेगा, कौन पीठ थपथपाएगा; मीनमेख निकालने वाले तो बहुत मिलेंगे, पर सन्मार्ग दिखाकर प्रोत्साहित कौन करेगा ? हजारों गालियाँ देने वाले विरोधियों के प्रति भी अब यह शब्द कौन कहेगा कि " भाई ! वह भी तो भगवान हैं, पर्याय में भूल है तो क्या हुआ, वह तो निकल जाने वाली है।" अब यह प्रेरणा कौन देगा कि "आलोचना करनेवालों की ओर नहीं, अपनी ओर देखो।' ww अब किसकी दिनचर्या को देखकर लोग अपनी घड़ियाँ मिलायेंगे ? अब हम लोग किससे निश्चय की महिमा सुनेंगे और किसके व्यवहार को अपना आदर्श बनाएंगे? अब कौन गायेगा निरन्तर आत्मा के गीत; कौन पहुँचाएगा अत्यल्प मूल्य में जिनवाणी घर - घर ? अब कौन ..? मेरे प्रिय आत्मार्थी बन्धुओ ! सूरज डूब गया। पर अब क्या हो सकता है ? वह तो डूब ही गया । अन्धकार, घना अन्धकार बढ़ता जा रहा है, वह तो बढ़ता ही जायेगा; पर हम सब अब भी क्यों सो रहे हैं, क्यों रो रहे हैं? यह सोने का समय नहीं, यह रोने का भी समय नहीं है । जागो ! उठो! इस घने अंधकार को दूर करने के लिए घर-घर में दीपक जलाओ, मसालें जलाकर निकल पड़ो और गलियों का, चौराहों का अंधकार दूर कर दो । पूज्य स्वामीजी से जो कुछ पाया है, उसे जन-जन तक पहुँचाने का महान उत्तरदायित्व आपके कंधों पर है। यह रोने का, सोने का, लड़ने का, झगड़ने का, उदासीन होकर घर बैठ जाने का समय नहीं है। !
SR No.009446
Book TitleBikhare Moti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla, Yashpal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2001
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy