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हा गुरुदेव! अब कौन....?
(आत्मधर्म दिसम्बर १९८० में से) हे गुरुदेव! आपके इस आकस्मिक महाप्रयाण से लाखों आत्मार्थियों के हृदय व्याकुल हो उठे हैं। यह जानते हुए भी कि जो कुछ होना था, सो हो चुका, इस तथ्य को, पर्यायगत सत्य को स्वीकार करने के लिए हृदय तैयार नहीं है। आपने हमें आध्यात्मिक गूढ रहस्यों के साथ-साथ यह भी तो समझाया था कि कोई किसी को समझा नहीं सकता। समझाने के अभिमान से दग्ध वक्ता तो बहुत मिल जावेंगे, पर आत्मा समझ तो सकता है, समझा नहीं सकता; क्योंकि समझना उसका स्वभावगत धर्म है - यह समझाने वाला अब कहाँ मिलेगा?
आपके अभाव में आज हम सब अनाथ हो गए हैं। हजारों आत्मार्थी वर्ष भर यह आशा लगाए बैठे रहते थे कि श्रावण मास आयेगा, सोनगढ़ में शिविर लगेगा, हम वहाँ जायेंगे, और गुरुदेवश्री की पुरुषार्थप्रेरक दिव्यवाणी सुनेंगे। पर....?
अब इस आर्थिक युग में धन को धूल कौन कहेगा? कौन गायेगा त्रिकाली आत्मा के गीत? पुण्य के गीत गाने वाले तो गली-गली में मिल जावेंगे, पर धर्म का सच्चा स्वरूप डंके की चोट अब कौन बतावेगा? अब कौन लगावेगा आत्मा आत्मा आत्मा की पुकार? अब कौन समझायेगा समयसार का मर्म और कौन बतायेगा आत्मा का धर्म?
अब सोनगढ़ लोग किसके दर्शन करने, प्रवचन सुनने आवेंगे? हाँ, जिनमंदिर में विराजमान सीमंधर परमात्मा के, परमागम मंदिर में विराजमान