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चतुर्थ स्मृति दिवस के अवसर पर - श्री कान गुरु जाते रहे ?
( वीतराग - विज्ञान - नवम्बर, १९८४ में से ) जिसने बताया जगत को क्रमबद्ध है सब परिणमन । परद्रव्य से है पृथक् पर हर द्रव्य अपने में मगन ॥ स्वाधीन है प्रत्येक जन स्वाधीन है प्रत्येक कन। गुरु कान का सन्देश धर लो कान जग के भव्यजन ॥ १ ॥ जो एक शुद्ध सदा अरूपी आत्मगुण गाते रहे । पर्याय से भी भिन्न जो निज द्रव्य समझाते रहे ॥ गुण-भेद से भी भिन्न जो निज आत्मा ध्याते रहे । वे भव्य-पंकज-भास्कर श्री कान गुरु जाते रहे ॥ २ ॥ उनका बताया तत्त्व जग में आज भी जब गूँजता । गुरु-गर्जनायुत वदन मन में आज भी जब घूमता ॥ प्रत्येक दिन वे आज तक जब स्वप्न में आते रहे । तब कौन कहता इस हृदय से कान गुरु जाते रहे ॥ ३ ॥
भाई ! भगवान भी दो तरह के होते हैं - एक तो वे अरहंत और सिद्ध परमात्मा, जिनकी मूर्तियाँ मन्दिरों में विराजमान हैं और उन मूर्तियों के माध्यम से हम उन मूर्तिमान परमात्मा की उपासना करते हैं, पूजन- भक्ति करते हैं; जिस पथ पर वे चले, उस पथ पर चलने का संकल्प करते हैं, भावना भाते हैं। ये अरहंत और सिद्ध कार्यपरमात्मा कहलाते हैं ।
दूसरे, देहदेवल में विराजमान निज भगवान आत्मा भी परमात्मा हैं, भगवान हैं, इन्हें कारणपरमात्मा कहा जाता है।
आत्मा ही है शरण, पृष्ठ-७४