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आचार्य कुन्दकुन्द की वाणी के प्रचार-प्रसार ........"
29 और न उसके प्रयासों में निरन्तरता ही देखने में आती है – यही उसकी असफलता का मूल आधार है। स्वामीजी की सफलता का राज परमसत्य की उपलब्धि, उसकी सतत आराधना और नियमित सतत प्रतिपादन ही है।
इस कल्पना से ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं कि यदि आध्यात्मिकसत्पुरुष श्रीकानजीस्वामी ने इस युग में कुन्दकुन्द वाणी का रहस्योद्घाटन नहीं किया होता तो हम जैसे अनेक पामर प्राणियों का क्या होता?
होता क्या, हम तुम भी शेष जगत के समान या तो विषय-कषाय में ही उलझे रहते या फिर कुछ क्रिया-काण्ड करके अपने को धर्मात्मा मान रहे होते
और अन्य लोगों को भी उसी ओर प्रेरित कर रहे होते। यह अमूल्य मानव जीवन यों ही विषय-कषाय में बीत जाता।
· पर इस असत् कल्पना से क्या लाभ है? सत्य तो यह है कि हम भी परम भाग्यवान हैं कि इस युग में पैदा हुए कि, जिसमें स्वामीजी के सत्समागम का लाभ भी मिला और उनके मुख से कुन्दकुन्द वाणी के रहस्यों को जानने का साक्षात् अवसर भी प्राप्त हुआ। न केवल इतना ही, अपितु उनकी भरपूर कृपा एवं मंगल आशीर्वाद भी सहज ही प्राप्त रहा; इससे भी आगे उनके पदचिन्हों पर चलकर उनके महान कार्य में अपना भी तुच्छ योगदान करने का संकल्प जगा, उसी में जीवन लगा और शेष जीवन भी तदर्थ ही समर्पित है।
हम ही नहीं, हम जैसे अनेकानेक आत्मार्थी भाई-बहिन हैं, जो आज. कुन्दकुन्द की वाणी के प्रचार-प्रसार में पूर्णत: समर्पित हैं । कुन्दकुन्द की वाणी के प्रचार-प्रसार में समर्पित कार्यकर्ताओं का निर्माण भी कुन्दकुन्द वाणी के प्रचार-प्रसार में स्वामीजी का अभूतपूर्व अद्भुत योगदान है; क्योंकि कार्यकर्ताओं के बिना जगत में कोई भी कार्य सम्पन्न नहीं होता। इसके लिए भी स्वामीजी का जितना उपकार माना जाय, कम ही है।
उनके शताब्दी वर्ष और दशवीं पुण्यतिथि के मंगल अवसर पर आचार्य कुन्दकुन्द की वाणी के प्रचार-प्रसार में उनके अभूतपूर्व अद्भुत सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण योगदान को स्मरण करते हुए हम उन्हें शत्-शत् वंदन करते हैं, उनका शत्-शत् अभिनन्दन करते हैं।