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________________ 28 बिखरे मोती उनके महान अपराजेय व्यक्तित्व पर कीचड़ उछालने के प्रयास भी कम नहीं हुए, पर वे सभी प्रयास चन्द्रमा पर थूकने के प्रयासों के समान ही सिद्ध हुए। जिसप्रकार कोई व्यक्ति चन्द्रमा पर थूकने का प्रयास करे तो उसके थूक का चन्द्रमा तक पहुँचना तो सम्भव नहीं है; अत: वह लौटकर उसी के मुख पर पड़ता। उसीप्रकार स्वामीजी के व्यक्तित्व को लांछित करने के सभी प्रयासों ने उन्हीं के व्यक्तित्वों को लांछित किया है, जिन्होंने इसप्रकार के प्रयास किये। __ स्वामीजी ने तो इस ओर ध्यान ही नहीं दिया। वे तो अपने में ही मग्न रहे, अपने अनुयायियों को ही सरलभाव से - सहजभाव से समझाते रहे ; किसी से भी उलझे नहीं। उलझना-उलझाना उन्हें इष्ट भी न था, वे तो सुलझे हुए महापुरुष थे और जगत-जाल में उलझे हुए लोगों को सुलझाने ही आये थे, सो जीवन-पर्यन्त सुलझाते ही रहे। यदि वे उलझ जाते तो फिर हम जैसे अगणित लोगों को कैसे सुलझाते? कुन्दकुन्दवाणी के आधार पर आध्यात्मिकसत्पुरुष श्रीकानजीस्वामी द्वारा सम्पन्न यह आध्यात्मिक क्रान्ति बिना किसी उखाड़-पछाड़ के, बिना किसी तनाव के इतने सहजभाव से सम्पन्न हुई कि लोक में इसकी मिसाल नहीं है। भारत के एकदम एक कोने में बैठकर प्रतिदिन मात्र स्वान्तःसुखाय दो प्रवचन और सायंकाल ४५ मिनट तक जिज्ञासुओं की शंकाओं का समाधान – बस यही उपक्रम रहा है इस महान क्रान्ति का। क्या कोई कल्पना कर सकता है कि आरम्भ में महीनों किसी की समझ में न आने वाले और प्रारम्भिक श्रोताओं के पूरी तरह समझ में न आने वाले प्रवचनों एवं सहजभाव से दिये गये प्रश्नों के उत्तरों के माध्यम से इतनी महान क्रान्ति सम्पन्न हो सकती है। निरन्तर एक ही ध्वनि में त्रिकाली ध्रुव भगवान आत्मा की कथा करने एवं लगातार आत्मा के ही गीत गाते रहने की प्रबल शक्ति का ही यह अद्भुत विस्फोट है कि जिसने मिथ्या-अंधकार को भगा दिया है और जग को जगमगा दिया है। निरन्तरता में अद्भुत शक्ति होती है और यदि वह परमसत्य के साथ जुड़ जाए तो उसका कहना ही क्या है? जगत ने न तो परमसत्य को ही पाया है
SR No.009446
Book TitleBikhare Moti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla, Yashpal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2001
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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