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________________ __ आचार्य कुन्दकुन्द की वाणी के प्रचार-प्रसार .... 27 न कुछ श्रेय तो है ही, पर जो प्रबल प्रवाह आज कुन्दकुन्द वाणी का बह रहा है, उसके मूल में मूलतः स्वामीजी ही हैं । आज यह एक सर्वमान्य तथ्य है। स्वामीजी के माध्यम से न केवल कुन्दकुन्द का साहित्य छपा ही, परमागम मन्दिर के रूप में संगमरमर के पार्टियों पर स्वर्णाक्षरों में अंकित भी हुआ; पर यह सब तो उनकी भाषा में जड़ की क्रिया है, सबसे बड़ा काम तो यह हुआ कि वह लाखों के मानस में समा गया; लोगों की बुद्धि में समा गया और हृदय में उतर गया। यह काम ऐसा है, जो सर्वसाधारण के वश की बात नहीं है। ____ कोई करोड़पति संकल्प करले तो लाखों समयसार छपा सकता है और निःशुल्क घर-घर में भी पहुँचा सकता है; पर वह समयसार रद्दी के रूप में बाजार में बिकने आ जायगा; उसके पन्नों पर लोग चाट-चाट कर चाट खायेंगे। जबतक लोगों में उसके पठन-पाठन की रुचि जागृत न हो, उसके प्रति बहुमान न जगे, उसमें मुक्ति की राह न दिखे, उसका रस न लगे; तबतक छपाने और निःशुल्क बाँटने से कुछ भी होनेवाला नहीं है। मूल बात तो प्यास जगाने की है। बिना प्यास के निर्मल-शीतल जल उपलब्ध होने पर भी कोई उसे छूता तक नहीं। स्वामीजी ने लोगों को समयसार की प्यास जगाई और ऐसी जगाई कि लोग समयसार का अमृतपान करने के लिए आतुर हो उठे, व्याकुल हो उठे। यही कारण है कि आज गाँव-गाँव में समयसार पढ़ा जा रहा, समयसार सुना जा रहा, समयसार के गीत गाये जा रहे ; सम्पूर्ण वातावरण समयसारमय हो गया है। ___ स्वामीजी ने लोगों में समयसार की रुचि भी जगाई और उन्हें अल्पमूल्य में समयसार उपलब्ध भी कराया। यही कारण है कि वे कुन्दकुन्द की वाणी के साथ-साथ स्वयं भी लोगों के हृदय में समा गये। समयसार ने उन्हें सत्पथ · बताया और उन्होंने समयसार जन-जन तक पहुँचाया तथा समयसार की नाव पर सवार होकर वे स्वयं जन-जन के हृदय में समा गये। ___यह है स्वामीजी के जीवन का संक्षिप्त लेखा-जोखा, जो आज जन-जन की जबान पर अवस्थित है और युग-युग तक अवस्थित रहेगा।
SR No.009446
Book TitleBikhare Moti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla, Yashpal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2001
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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