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________________ ४ आचार्य कुन्दकुन्द की वाणी के प्रचार-प्रसार में कानजीस्वामी का योगदान ( जैनपथप्रदर्शक विशेषांक १९९० ) जिन - अध्यात्म के प्रतिष्ठापक आचार्य कुन्दकुन्द का प्रसिद्ध परमागम समयसार यदि आज जन-जन की वस्तु बन रहा है तो उसका सर्वाधिक श्रेय एकमात्र आध्यात्मिक सत्पुरुष श्री कानजीस्वामी को ही है। न केवल समयसार अपितु प्रवचनसार, नियमसार, पंचास्तिकायसंग्रह तथा अष्टपाहुड भी यदि आज जिनमन्दिरों की प्रवचन सभाओं में प्रवचन के विषय बन गये हैं तो इसका श्रेय भी कानजीस्वामी को ही है। आज का हर जागृत श्रोता समयसार ही सुनना चाहता है । यही कारण है कि आज उन्हें भी सभाओं में समयसार पढ़ना पड़ रहा है, जो कभी समयसार को पढ़ने का निषेध किया करते थे कि समयसार श्रावकों को पढ़ने की चीज नहीं है । . सचमुच ही यह साधारण कार्य नहीं है कि जो कृति कभी विद्वानों के अध्ययन की वस्तु न थी, वह आज जन-जन की वस्तु बन गई है। तत्कालीन जैन समाज की स्थिति का सही रूप जानने के लिए ४ नवम्बर, १९७६ के जैनसन्देश के सम्पादकीय रूप में सिद्धान्ताचार्य पण्डित कैलाशचंदजी, वाराणसी का निम्नांकित कथन पर्याप्त है, जो उस समय की स्थिति का नग्न चित्र प्रस्तुत करता है। उनका मूल कथन शब्दश: इस प्रकार है - 44 'आज से पचास वर्ष पूर्व तक शास्त्रसभा में शास्त्र बाँचने के पूर्व भगवान कुन्दकुन्द का नाममात्र तो लिया जाता था; किन्तु आचार्य कुन्दकुन्द के
SR No.009446
Book TitleBikhare Moti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla, Yashpal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2001
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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