________________ 224 बिखरे मोती निर्मल हृदय से बात करनी होगी। यदि बात अयोध्या तक ही होती तो अबतक निपट गई होती। __ मैंने कल ही अखबार में पढ़ा कि - एक भाई कहता है सवाल यह नहीं है कि वहाँ मन्दिर बनेगा या नहीं? सवाल यह है कि इस देश में हिन्दू संस्कृति चलेगी अथवा अन्य? - यह जो भावना है, वह समस्या को हल नहीं होने देती। इससे जब वार्ता करने बैठेंगे तो पीछे से दबाव बनेगा कि यदि फैसला हमारे पक्ष में नहीं हुआ तो हम यह कर देंगे, हम वह कर देंगे। दोनों ओर से धमकियाँ देकर अपने अनुकूल निर्णय कराने का प्रयत्न होगा और इसलिए समयसीमा बाँधी जाएगी। वास्तव में साफ हृदय से काम हो तो काम 3 माह का भी नहीं है। यदि खुले हृदय से नहीं किया तो वर्षों तक निपटनेवाला नहीं है। प्रश्न - भारतीय संस्कृति तो हमेशा प्रेम और सहयोग की रही है। उस परम्परा में ये टकराव की स्थितियाँ कैसे आ गईं और समस्या उत्पन्न हो गई? डॉ. साहब - यह बात ऐसी है कि समझौते कुछ लेकर और कुछ देकर होते हैं; लेकिन समझौते में जो अधिक त्याग करेगा वह महान होगा, जो ज्यादा लेने का प्रयत्न करेगा वह महान सिद्ध नहीं होगा। जहाँ तक भारतीय जनता का सवाल है, वह यह नहीं जानना चाहती कि तुमने क्या दिया और क्या लिया? वह तो समझौता होने पर शांति की साँस लेगी। उसे समझौते में ही प्रसन्नता होगी। ___ भारतीय जनता को समझाया जाए कि मन्दिर बहुत सुन्दर और विशाल बनेगा पर थोड़ा-सा 50 कदम हटकर बनेगा। इससे भारतीय मानस एकदम आन्दोलित होनेवाला नहीं है। मेरे कहने का मतलब यह है कि बात समझाई जा सकती है। ऐसे ही मुस्लिम भाइयों को भी समझाया जा सकता है। इसमें सवाल उदारता का है, जो उदारता दिखाएगा, वह महान सिद्ध होगा। हमारा देश दान के लिए प्रसिद्ध है, वह हमेशा अपना सर्वस्व देने को तैयार रहता है। जिसे महान बनना है, उसे लेने से ज्यादा देने पर बल देना पड़ेगा। यही एकमात्र रास्ता है।