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अयोध्या समस्या पर वार्ता
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जो सबको मान्य हो, जिससे सभी को प्रसन्नता हो । निर्णय से एक पक्ष प्रसन्न
एवं दूसरा नाराज हो - यह अच्छी बात नहीं है ।
मुझे विश्वास है कि सभी पक्षों के धर्मगुरु मिलकर जो भी निर्णय देंगे; उसे सम्पूर्ण भारत सहज भाव से स्वीकार कर लेगा; क्योंकि जनता तो समझौता चाहती है, शान्ति चाहती है, एकता चाहती है।
यदि हमारे धर्मगुरु ऐसा रास्ता नहीं निकाल पाते तो हमें कोई दूसरा रास्ता शेष न रहने से न्यायालय की शरण में ही जाना पड़ेगा। वहाँ पर सौ-सौ वर्ष तक मुकदमे चलते हैं और कोई निर्णय नहीं निकलता । निर्णय निकले भी तो भी जनमानस को मान्य नहीं होता। निर्णय निकलने तक तो कितने दंगे-फसाद हो जाते हैं । इसलिए सही निर्णय आस्थावान सन्त-धर्मगुरु ही निकाल सकते हैं। वे सभी प्रतिज्ञा करके बैठें कि हम सभी को मान्य रास्ता निकालेंगे, जिससे किसी को कोई दुःख नहीं पहुँचेगा। राजनैतिक लोग धर्मगुरुओं का मार्गदर्शन न करें; लेकिन धर्मगुरु विशाल हृदय को लेकर इस मामले को सुलझाएँ और वे निर्णय लेकर राजनीतिज्ञों से कहें कि हमने यह निर्णय लिया है, आप इसे लागू कीजिए। यह रास्ता ही सही है।
प्रश्न - भारिल्ल साहब ! क्या आप इस बारे में कुछ कहना चाहेंगे कि दोनों पक्ष बैठकर बात करें और उन बातों को गौण करें, जो हम आपस में नहीं सुलझा सकते हैं। जो हम नहीं सुलझा सकते, उनको हम पंचों के फैसले के लिए दें और इसके पीछे कोई शर्त, कोई समयसीमा निश्चित नहीं करें । आपकी क्या राय है?
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डॉ. साहब - बात अकेली मन्दिर अथवा मस्जिद की नहीं है । बात बहुत कुछ आगे की है । सवाल बुड्ढी के मरने का नहीं है, मौत घर देख गई है समस्या यह है । उस स्थान पर मन्दिर बने या मस्जिद - इतना ही मुद्दा नहीं है । हमारे मुस्लिम भाइयों को ऐसा लगता है कि आज यहाँ हुआ, कल मथुरा में होगा, परसों बनारस में होगा । तो क्या सारी मस्जिदें मन्दिर में बदल जाएँगी? समस्या यह है। और इस समस्या के समाधान हेतु दोनों पक्षों को