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________________ ६ जरा गंभीरता से विचार करें अहिंसा प्रधान जैनधर्म में जीव दया का बड़ा भारी महत्त्व है। जीव दया जैनाचार का मूल आधार है। आज हमारे जीवन से दया धर्म उठता जा रहा है । अन्य जीवों की बात तो बहुत दूर आज तो हम उन प्राणियों की भी रक्षा नहीं कर पाते हैं, जिनका हमारे सात्त्विक जीवन में महत्त्वपूर्ण योगदान है । जीवदया की मर्यादा मात्र यहाँ तक ही सीमित नहीं है कि हम उन्हें मारें नहीं, सताएँ नहीं; अपितु उनकी सुरक्षा करना भी जीवदया में आती है । आज तो गाय जैसे दुधारू पशुओं की भी बड़ी निर्दयता से हत्याएँ हो रही हैं। अकालादि के कारण भी हजारों की संख्या में पशुधन नष्ट हो रहा है। हम जन्म देनेवाली माँ का दूध तो जीवन के आरंभिक दिनों में आठ-दस माह ही पीते हैं; पर उसका ऋण हम जीवन भर माँ-बाप की सेवा करके भी नहीं चुका पाते । हम जीवन भर उनके कृतज्ञ बने रहते हैं और बने रहना चाहिए; पर एक बात की ओर हमारा ध्यान ही नहीं है कि गोमाता का दूध तो हम जीवन भर पीते हैं । उसके प्रति हमारा भी कुछ कर्त्तव्य है या नहीं ? जरा गंभीरता से विचार कीजिए । अरे भाई ! माँ का दूध तो अकेले अबोध बालक ही पीतें हैं; पर गाय माता का दूध तो बालक, वृद्ध सभी पीते हैं; हम सब प्रतिदिन ही गाय माता के दूध, दही, घी का उपयोग करते हैं। उनकी सुरक्षा करना हम सभी का परमकर्त्तव्य है? यह कहाँ का न्याय है कि जब तक वह दूध दे, हम उसका दूध पीवें और
SR No.009446
Book TitleBikhare Moti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla, Yashpal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2001
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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