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बिखरे मोती __ "विवेकी कस्तयत्भानं, क्रोधादीय वशं नयेत ।" वह कैसा विवेकी है जो क्रोधादि के वशीभूत हो जाता है । अर्थात् विवेकी कभी भी क्रोधादि के वशीभूत नहीं होते हैं।
कुछ लोगों का कहना है कि क्रोधादि विकारों के बाह्य निमित्त मिलते हैं, तब क्रोधादि की उत्पत्ति होती है; अत: क्रोधादि का अभाव करने के लिए बाह्य निमित्तों को मेटना चाहिए, उनसे बचना चाहिए। पर यह विचार सत्य नहीं है; क्योंकि एक तो उनके कारण क्रोधादि उत्पन्न होते नहीं हैं। क्रोधादि की उत्पत्ति का कारण अपने अंतरंग में विद्यमान अविवेक है, न कि बाह्य पदार्थ। दूसरे बाह्य संयोगों का हटाना संभव भी नहीं है। जैसे कोई व्यक्ति कहे कि मुझे वैसे तो काम विकार की उत्पत्ति नहीं होती, किन्तु किसी महिला को देखने पर हो जाती है; अत: मेरे सामने किसी महिला को नहीं आने देना चाहिए। तो बताइए क्या यह संभव है कि दुनिया से महिलाओं को हटा दिया जाए। उसके घर में भी उसकी माँ-बहिनें तो रहेंगी ही। अपना विकार दूर करने के लिए अपने में विवेक उत्पन्न करना चाहिए, दुनिया में परिवर्तन नहीं।
अत: आचार्य हेमचन्द्र का यह कहना पूर्ण सत्य है कि क्रोधादि विकार का कारण अविवेक है और विवेक ही ऐसा साधन है कि जिससे विकार पर अंकुश ही नहीं लगाया जा सकता; वरन् उसका अभाव भी किया जा सकता
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क्षमा अनन्त संसार का अनुबन्ध करने वाला अनन्तानुबंधी क्रोध आत्मा के प्रति अरुचि का नाम है। धर्म के दशलक्षण, पृष्ठ-२२ विरोधियों की एक आदत होती है - विद्यमान गुणों की चर्चा तक न करना और अविधमान अवगुणों की बढ़ा-चढ़ाकर चर्चा करना।
धर्म के दशलक्षण, पृष्ठ-२५ धर्मवीर ही क्षमाधारक हो सकता है, युद्धवीर नहीं।
धर्म के दशलक्षण, पृष्ठ-१८३
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