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________________ कविवर पण्डित बनारसीदास 13 फक्कड़ - शिरोमणि कविवर बनारसीदासजी ने तीन सौ वर्ष पूर्व आत्मचरित लिखकर हिन्दी के वर्तमान और भावी फक्कड़ों को मानो न्योता दे दिया है। यद्यपि उन्होंने विनम्रतापूर्वक अपने को कीट-पतंगों की श्रेणी में रखा है (हमसे कीट-पतंग की, बात चलावे कौन ?) तथापि इसमें कोई सन्देह नहीं कि वे आत्मचरित - लेखकों में शिरोमणि हैं।" श्री बनारसीदासजी चतुर्वेदी के उक्त कथन से यह अत्यन्त स्पष्ट है कि वे कविवर बनारसीदासजी को मात्र हिन्दी का ही नहीं, अपितु समस्त भारतीय भाषाओं का सर्वश्रेष्ठ एवं आद्य आत्मकथाकार स्वीकार करते हैं । 1 फक्कड़ - शिरोमणि महाकवि पण्डित बनारसीदास ने अपने जीवन में जितने उतार-चढ़ाव देखे, उतने शायद ही किसी महापुरुष के जीवन में आये हों । पुण्य और पाप का ऐसा सहज संयोग अन्यत्र असंभव नहीं तो दुर्लभ तो है ही । जहाँ एक ओर उनके पास उधार खाई चाट के पैसे चुकाने के लिए भी नहीं थे, वहीं दूसरी ओर वे कई बार लखपति भी बने । जहाँ एक ओर वे शृंगाररस में सराबोर एवं आशिखी में रस-मग्न दिखाई देते हैं, वहीं दूसरी ओर समयसार की पावन अध्यात्मगंगा में भी डुबकियाँ लगाते दिखाई देते हैं। एक ओर स्वयं रूढ़ियों में जकड़े मंत्र-तंत्र के घटाटोप में आकण्ठ डूबे दिखाई देते हैं तो दूसरी ओर उनका जोरदार खण्डन करते भी दिखाई देते हैं। उन्होंने अपने जीवन में तीन बार गृहस्थी बसाई, पर तीनों बार उजड़ गई। ऐसी बात नहीं थी कि वे संतान का मुँह देखने को तरसे हों, पर यह भी सत्य हैं कि उन्हें संतान सुख प्राप्त न हो सका। तीन-तीन शादियाँ और नौ-नौ संतानों का सौभाग्य किस-किसको मिलता है? पर दुर्भाग्य की भी तो कल्पना कीजिए कि उनकी आँखों के सामने ही सबके सब चल बसे और वे कुछ न कर सके, हाथ मलते रह गये। उस समय उन पर कैसी गुजरी होगी यह एक भुक्तभोगी ही जान सकता है । उन्होंने स्वयं अपनी अन्तर्वेदना इसप्रकार व्यक्त की है। — १. अर्द्धकथानक, हिन्दी का प्रथम आत्मचरित, पृष्ठ १४ २. समयसार नाटक, प्रस्तावना, पृष्ठ १ —
SR No.009446
Book TitleBikhare Moti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla, Yashpal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2001
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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