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बिखरे मोती निज भगवान आत्मा की आराधना ही दुःखों से मुक्ति का सच्चा उपाय है। इसीलिए कहा गया है -
"एक देखिये, जानिए, रमि रहिये इक ठौर ।
समल विमल न विचारिये, यहै सिद्धि नहिं और ॥१" जिसे देखने, जानने और जिसमें रमने की प्रेरणा यहाँ दी गई है, वह एक निज भगवान आत्मा ही है और उसकी ही आराधना को यहाँ एकमात्र सिद्धि का उपाय बताया गया है। यह सिद्धि भी आत्मा की दु:खों से मुक्ति के अतिरिक्त और कुछ नहीं है। ___ मोह का नाश कर अनन्त सुखी होकर अनन्तकाल तक जीने का उपाय बताते हुए कविवर पण्डित बनारसीदासजी भी उसी भगवान आत्मा की शोधखोज करने की, उसी का चिन्तन करने की, जन्म भर उसका ही परमरस पीने की प्रेरणा इसप्रकार देते हैं - "बानारसी कहै भैया भव्य सुनौ मेरी सीख,
__ कैहूं भांति कैसे हूं कै ऐसौ काजु कीजिए । एकहू मुहूरत मिथ्यात कौ विधुंस होइ,
ग्यान कौं जगाइ अंस हंस खोजि लीजिए । वाही को विचार वाको ध्यान यहै कौतूहल,
यौं ही भरि जनम परमरस पीजिए । तजि भव-वास कौ विलास सविकाररूप,
अंत करि मोह को अनंतकाल जीजिए ॥" ज्ञान को जगांकर जिस हंस को खोजने की प्रेरणा उक्त छन्द में दी गई है, वह हंस निज भगवान आत्मा के अतिरिक्त और कुछ नहीं है । उसी का विचार, उसी का ध्यान, उसी में तल्लीनता ही सच्चा सुख प्राप्त करने का एकमात्र उपाय है। समयसार में आचार्य कुन्दकुन्द स्वयं भी तो यही कहते हैं - "एदम्हि रदो णिच्चं संतुट्ठो होहि णिच्चमेदम्हि । एदेण होहि तित्तो होहदि तुह उत्तमं सोक्खं ॥२०६॥"
१. समयसार नाटक, जीवद्वार, छन्द २० २. समयसार, नाटक, जीवद्वार, छन्द २४