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बिखरे मोती
नहीं हैं। मैं हूँ भी उम्र की इस स्थिति में । अनुभव तो मुझमें कितना क्या है, मैं नहीं जानता, पर काम करने का जोश बरकरार है, अभी कम नहीं हुआ है । आशा है मेरी इस स्थिति पर दोनों ही वर्ग सद्भावनापूर्वक विचार करेंगे।
युवकों से मेरा कहना है कि भविष्य का सब कुछ अपने को ही तो मिलना है, आज न सही तो कल । इनके अनुभव से जितना लाभ उठा सको, उठा लो; नहीं तो इनका क्या ? ये कितने दिन के मेहमान हैं ? आज मरे और कल तीसरा दिन होने वाला है । रहेंगे तो भी क्या ? ऐसे होकर रहेंगे कि न कुछ सुन पायेंगे, न देख पायेंगे।
बुजुर्गों से भी तो मैं एक बात कहना चाहता हूँ कि इनकी कोरी आलोचना से क्या हाथ आएगा तुम्हारे ? जितना सिखा सको, प्रेम से सिखा दो; अन्यथा तुम्हारी कला तुम्हारे साथ ही चली जाएगी। तुम्हें तो इनके लिए सब कुछ छोड़कर जाना ही है। चाहे अच्छी तरह छोड़ जाओ, चाहे मजबूरी में । मेरी मानो तो इन्हें अच्छी तरह ही क्यों नहीं सौंप जाते हों अपनी निधि को । देर करने से भी क्या लाभ ? आज नहीं तो कल देना तो है ही ।
दोनों ही पीढ़ियों से मैं अपेक्षा करता हूँ कि वे अपने कार्यों से, क्रियाकलापों से दोनों पीढ़ियों की दूरी को कम करेंगे, पाटेंगे, बढ़ायेंगे नहीं । दोनों की सम्मिलित शक्ति देश को व समाज को आगे बढ़ाएगी ।
बुजुर्गों के अनुभवों से पूरा पूरा लाभ उठाते हुए युवक निरन्तर आगे बढ़ें – इसी पवित्र भावना के साथ विराम लेता हूँ ।
ज्ञानी तो अपने प्रयोजन की सिद्धि की सफलता में ही अपनी जीत मानते हैं । अतः वस्तुतः वे कभी हारते ही नहीं; क्योंकि वे येन-केनप्रकारेण अपने प्रयोजन की सिद्धि को ही लक्ष्य में रखते हैं ।
सत्य की खोज, पृष्ठ १६