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जोश एवं होश
191 यह एक सर्वमान्य सत्य है कि युवकों में जोश और प्रौढ़ों में होश की प्रधानता होती है। युवकों में जितना जोश होता है, कुछ कर गुजरने की तमन्ना होती है, उतना अनुभव नहीं होता, होश नहीं होता। इसीप्रकार प्रौढ़ों में जितना अनुभव होता है, उतना जोश नहीं। ___ कोई भी कार्य सही और सफलता के साथ सम्पन्न करने के लिए जोश
और होश दोनों की ही आवश्यकता होती है। अत: देश व समाज को दोनों की ही आवश्यकता है। ये दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं, विरोधी नहीं।
मनुष्य पशुओं से इस अर्थ में भाग्यशाली है कि उन्हें अपने पूर्वजों से अनुभव का भी लाभ प्राप्त होता है। पशुओं को सब-कुछ ठोकर खाकर ही सीखना पड़ता है। पूर्वजों के अनुभव से लाभ उठाना मानव जीवन की सार्थकता है और उनके अनुभवों की उपेक्षा करना मानव को प्राप्त सुविधा की अवहेलना है। नई पीढ़ी को इस तथ्य की ओर ध्यान देना जरूरी है। ___काम जोश से होता है, शक्ति से होता है - इस बात की उपेक्षा करना
भी हितकर नहीं है। सुनिश्चित योजना होश में अनुभव से बनती है और उसकी क्रियान्विति के लिए पूरी शक्ति और जोश की आवश्यकता होती है। बिना जोश का होश शक्तिहीन मरियल घोड़े की सवारी है और बिना होश का जोश बिना लगाम के घोड़े जैसी सवारी है। दोनों ही सवार अपने गन्तव्य पर नहीं पहुँच पायेंगे। गन्तव्य पर पहुँचने के लिए शक्तिशाली जोशीले घोड़े और अनुभवी सवार का सही मार्गदर्शन बहुत जरूरी है।
आज समाज में देश में दोनों ही चीजें विद्यमान हैं, न जोश की कमी है न होश की। बस, आवश्यकता समुचित नियोजन की है। समुचित नियोजन का उत्तरदायित्व होशवालों पर अधिक है; क्योंकि वे अनुभवी हैं । जोशवालों की जिम्मेदारी मात्र इतनी है कि वे अपने अनुभवी बुजुर्गों की तर्क-संगत बात सुनें, समझें और यथासंभव ससम्मान कार्यरूप परिणत करें। बुजुर्गों का मार्गदर्शन भी सीधा-सच्चा बिना लम्बे-चौड़े उपदेश के अपेक्षित है। ___ कम-से-कम मैं अपने बारे में ऐसा अनुभव करता हूँ कि मुझे युवक बुजुर्ग मानते हैं और बुजुर्ग युवक। दोनों ही मुझे अपने में स्वीकार करने को तैयार