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आचार्य कुंदकुंद और दिगम्बर जैन समाज की एकता 189
दूसरी बात यह भी तो है कि जिन मुनिराजों से मुमुक्षु-भाइयों का सम्पर्क बढ़ता है और जो मुनिराज उन्हें अपना आशीर्वाद प्रदान करते हैं, तो उन्हें सोनगढ़ी मुनिराज घोषित कर दिया जाता है, उन्हें मुनि मानने से भी इन्कार किया जाने लगता है । आचार्य विद्यानन्दजी महाराज स्मारक में पधारे तो उनके भी तिरस्कार करने की असफल कोशिश की गई । ब्यावर संबंधी घटना इसका सशक्त प्रमाण है।
इतनी प्रतिकूलताओं में भी हमने कभी किसी की आलोचना नहीं की, विरोध नहीं किया, फिर भी झूठे आरोप लगा-लगाकर हमें निरन्तर बदनाम करने के प्रयास चल रहे हैं, जो दिगम्बर जैन समाज की एकता में सबसे बड़े बाधक कारण हैं। उदाहरण के रूप में उज्जैन, नागपुर और बागीदौरा की घटनाओं को प्रस्तुत किया जा सकता है।
किसी के किसी प्रकार का मतभेद होना अलग बात है और लड़झगड़कर समाज में फूट डालना एकदम अलग बात है।
इसप्रकार यह अत्यन्त स्पष्ट है कि हम न तो किसी की निन्दा ही करते हैं और न ही लड़ाई-झगड़ा करना चाहते हैं, हम तो शान्ति से अपना स्वाध्याय करना चाहते हैं और जिनवाणी के प्रसाद से जो कुछ भी प्राप्त हुआ है; उसे जन-जन तक पहुँचाना चाहते हैं। ___ आचार्य कुन्दकुन्द और उनकी वाणी में जिनकी आस्था है, वे सभी हमारे सच्चे साधर्मी भाई हैं, उनसे रंचमात्र भी वैर-विरोध हमें अभीष्ट नहीं है ; अपितु हम उनका हार्दिक वात्सल्य चाहते हैं, कुन्दकुन्द के अनुयायियों की अर्थात् सम्पूर्ण दिगम्बर जैन समाज की एकता हमें हृदय से अभीष्ट है, तदर्थ हम अपनी आस्थाओं को छोड़कर और सबकुछ समर्पित करने को तैयार हैं। ___ आचार्य कुन्दकुन्द के इस पावन द्विसहस्राब्दी समारोह के अवसर पर दिगम्बर जैन समाज के कर्णधारों से मैं एक बार फिर विनम्र अनुरोध करना चाहता हूँ कि वे दिगम्बर जैन समाज की ऐसी एकता के लिए; जिसमें कुन्दकुन्द का एक भी भक्त बाहर न जावे, सच्चे मन से प्रयास करें। हमारी ही नहीं सभी कुन्दकुन्द भक्तों की हार्दिक मंगल कामनाएँ उनके साथ हैं।