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________________ 184 बिखरे मोती इस सन्दर्भ में आचार्य श्री विद्यानन्दजी महाराज ने आज से चार-पाँच वर्ष पूर्व श्रवणबेलगोला में सम्पन्न महामस्तकाभिषेक के समय ही चर्चा की थी। उनके मन में तो यह बात इससे भी पहले थी, उसी के परिणामस्वरूप कुन्दकुन्द भारती की स्थापना हुई थी। उनसे प्रेरणा पाकर हमने भी अपने अगस्त, 1987 के जयपुर शिविर में विचार-विमर्श कर इस महोत्सव को पूरी शक्ति लगाकर मनाने का निर्णय लिया । पर इसमें गति तब आई, जब आचार्य विद्यानन्दजी महाराज जयपुर पधारे और उन्होंने इसके लिए हमें प्रेरित ही नहीं किया, अपितु दस हजार की जनसभा में आदेश दिया कि आपको इस कार्य को पूरी शक्ति लगाकर करना है । हमें अपार प्रसन्नता हुई, पर हमने कहा कि हम तो जो आप कहेंगे, करेंगे ही; पर जबतक आप इसमें रस नहीं लेंगे, तबतक अखिल भारतीय स्तर पर जिस रूप में यह उत्सव होना चाहिए, नहीं हो पावेगा; क्योंकि हमारी शक्ति तो सीमित है । मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई कि आचार्यश्री का ध्यान इस ओर है और उन्होंने अहमदाबाद में सम्पूर्ण दिगम्बर जैन समाज के सभी प्रमुख लोगों की एक मीटिंग इस बात पर विचार करने के लिए बुलाई; जिसमें मुझे भी याद किया गया। आचार्य कुन्दकुन्द को श्रद्धांजलि समर्पित करने का यह अवसर चूकना मुझे कदापि इष्ट न था; अतः उस मीटिंग में मैं भी उपस्थित हुआ। उक्त अवसर पर महाराजश्री से बहुत ही उपयोगी अनेक चर्चाएँ हुईं। यह तो आप जानते ही हैं कि महाराज श्री के हृदय में समाज की एकता की बहुत बड़ी टीस है, वे सम्पूर्ण दिगम्बर जैन समाज को सुगठित एकता के सूत्र में आबद्ध देखना चाहते हैं। अहमदाबाद के समीप कोवा आश्रम में एक सार्वजनिक सभा में, जिसमें दिगम्बर जैन समाज के लगभग सभी वर्ग के लोग उपस्थित थे, महासमितिवाले, परिषवाले, महासभावाले और सोनगढ़ - जयपुरवाले मुमुक्षुभाई भी उपस्थित थे, महाराज श्री से प्रेरणा पाकर मैंने सभी से एक मार्मिक अपील की थी, उसका
SR No.009446
Book TitleBikhare Moti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla, Yashpal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2001
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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