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________________ आचार्य कुन्दकुन्द और दिगम्बर जैन समाज की एकता दिगम्बर जैन समाज में एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं होगा, जो आचार्य कुन्दकुन्द के प्रति श्रद्धावनत न हो, उनके प्रति समर्पित न हो, उनकी द्विसहस्राब्दी वर्ष में उन्हें अपने श्रद्धासुमन समर्पित न करना चाहता हो। अतः पहले जिसप्रकार सम्पूर्ण जैन समाज ने भगवान महावीर का पच्चीसवाँ निर्वाण वर्ष विभिन्न आयोजनों के माध्यम से जिस उत्साह के साथ मनाया था; उसी प्रकार उसी उत्साह के साथ आचार्य कुन्दकुन्द का यह द्विसहस्राब्दी समारोह भी मनाया जाना चाहिए। भगवान महावीर के पच्चीसौवें निर्वाण महोत्सव में जैन समाज में एक अभूतपूर्व एकता के दर्शन हुए थे, हम सब एक-दूसरे के नजदीक आये थे। उसीप्रकार इस महोत्सव में भी दिगम्बर समाज की एकता के सन्दर्भ में उच्चस्तरीय प्रयत्न किये जाने चाहिए। वस्तुत: स्थिति यह है कि जो भी व्यक्ति दिगम्बर जिनधर्म का अनुयायी है, वह कुन्दकुन्द का अनुयायी अवश्य होगा ही और जो कुन्दकुन्द का अनुयायी है, वस्तुतः वही सच्चा दिगम्बर जैन है। इसलिए यह अत्यन्त आवश्यक है कि दिगम्बर जिन-परम्परा के सर्वमान्य, सर्वश्रेष्ठ आचार्य कुन्दकुन्द को श्रद्धांजलि समर्पण करने के लिए सभी दिगम्बर धर्मानुयायी भाई-बहिनों को कुन्दकुन्द द्विसहस्राब्दी समारोह की छत्रछाया में एकत्र होकर एक आवाज में कुन्दकुन्द की वाणी से सारे भूमण्डल को इसप्रकार गुंजायमान कर देना चाहिए कि वह आवाज न केवल काश्मीर से कन्याकुमारी तक ही पहुँचे, अपितु सात समुद्र पार देश-विदेशों में भी पहुँचे और सम्पूर्ण जगत को सुख-शान्ति का मार्ग प्रशस्त करे।
SR No.009446
Book TitleBikhare Moti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla, Yashpal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2001
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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