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________________ 11 आचार्य अमृतचन्द्र रहती हैं, तब वे गद्य लिखते हैं और जब हृदय बुद्धि पर सवार हो जाता है तो वे कविता करने लगते हैं । इसीप्रकार के तत्त्व उनकी अन्य टीकाओं में भी पाये जाते हैं । उनके मौलिक ग्रन्थों में लघुतत्त्वस्फोट भक्ति साहित्य का बेजोड़ नमूना है, जो आद्यस्तुतिकार समन्तभद्र की स्तुतियों के समकक्ष खड़े होने में पूर्ण समर्थ है । यह स्तुति साहित्य में सर्वाधिक विशालकाय ग्रन्थ है। इसमें २५ - २५ छन्दों के २५ अध्याय हैं । इसप्रकार ६२५ छन्द हैं । इसमें आचार्य समन्तभद्र की शैली में चौबीस तीर्थंकरों की स्तुति के माध्यम से जिनागम में वर्णित मूल दार्शनिक सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया गया है। पुरुषार्थसिद्धयुपाय अबतक उपलब्ध श्रावकाचारों में अपने ढंग का अलग निराला श्रावकाचार है, जिसमें अमृतचन्द्र के अध्यात्म की गहरी छाप है। इसमें अहिंसा का वर्णन जिस गहराई से किया गया है, वैसा अन्यत्र दुर्लभ है । तत्त्वार्थसार आचार्य उमास्वामी के तत्त्वार्थसूत्र और उसपर लिखे गये आचार्य अकलंक के तत्त्वार्थराजवार्तिक की विषयवस्तु को आधार बनाकर लिखा गया तत्त्वार्थ का विवेचन है । यह तो सर्वविदित ही है कि तत्त्वार्थसूत्र और तत्त्वार्थराजवार्तिक संस्कृत भाषा के गद्य में लिखे गये ग्रन्थ हैं, जिनकी विषयवस्तु को अमृतचन्द्र ने तत्त्वार्थसार में पद्य में प्रस्तुत किया है । इसप्रकार हम देखते हैं कि आचार्य अमृतचन्द्र सर्वांगीण प्रतिभा के धनी थे । उनका जिन - अध्यात्म पर तो एकाधिकार था ही, वे न्यायशास्त्र, सिद्धान्तशास्त्र और आचारशास्त्र के भी परगामी थे । व्याकरण, छन्द, अलंकार, रस आदि काव्यशास्त्रीय विधाओं पर भी उनका अधिकार था । इसप्रकार वे रससिद्ध कवि, सशक्त टीकाकार और लोकप्रसिद्धि से दूर रहने वाले समर्थ आचार्य थे । a जिन - अध्यात्म के प्रखर तेजस्वी दिनकर थे, जिसकी किरणें आज हजार वर्ष बाद भी अध्यात्म जगत को आलोकित कर रही हैं ।
SR No.009446
Book TitleBikhare Moti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla, Yashpal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2001
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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