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________________ 10 बिखरे मोती कि टीकायें प्रायः गद्य में ही लिखी जाती हैं, अद्यावधि उपलब्ध टीकाएँ गद्य में ही हैं। यह बात अलग है कि मंगलाचरण, प्रशस्ति एवं उद्धरणों के रूप में कतिपय छन्द लिखे जायें, पर सम्पूर्ण विषयवस्तु गद्य में ही लिखी जाती है, किन्तु आत्मख्याति एक ऐसी टीका है जो गद्य एवं पद्य - दोनों में लिखी गई है। यह एक प्रकार से चम्पूकाव्य है; क्योंकि चम्पूकाव्य की परिभाषा ही यही है कि - गद्यपद्यमयंकाव्यं चम्पूरित्यभिधीयते - गद्य और पद्यमय काव्य को चम्पू कहते हैं। आत्मख्याति टीका में समागत पद्यभाग इतना विशाल और महत्त्वपूर्ण है कि उसे यदि अलग से रखें तो एक स्वतंत्र ग्रन्थ बन जाता है। ऐसा हुआ भी है – भट्टारक शुभचन्द्र ने परमाध्यात्मतरंगिणी नाम से, पाण्डे राजमलजी ने समयसारकलश नाम से एवं पण्डित जगमोहनलालजी ने अध्यात्मअमृतकलश नाम से उन पद्यों का संग्रह किया और उन पर स्वतंत्र टीकाएँ लिखी हैं । २७६ छन्दों में फैला यह पद्यभाग विविधवर्णी १६ प्रकार के छन्दों से सुसज्जित है, विविध अलंकारों से अलंकृत है और परमशान्त अध्यामरस से सराबोर है। इन्हीं छन्दों को आधार बनाकर कविवर बनारसीदासजी ने नाटक समयसार की रचना की है, जो हिन्दी जैनसाहित्य की अनुपम निधि है। आत्मख्याति टीका में बुद्धि और हृदय का अद्भुत समन्वय है। जब अमृतचंद्र वस्तुस्वरूप का विश्लेषण करते हैं तो प्रवाहमय प्रांजल गद्य का उपयोग करते हैं और जब वे परमशान्त अध्यात्मरस में निमग्न हो जाते हैं तो उनकी लेखनी से विविधवर्णी छन्द प्रस्फुटित होने लगते हैं । जिस विषयवस्तु को गद्य में तर्क और युक्तियों से पाठकों के गले उतारने का प्रयास किया जाता है, प्रायः उसे ही जीवन में उतारने की प्रेरणा कोमलकान्त पदावली में प्रिय संबोधनों द्वारा दी जाती है । इसप्रकार जब उनकी बुद्धि में युक्तियों का अंबार लग जाता है, तर्कों का पहाड़ खड़ा हो जाता है तो ये गद्य लिखने लगते हैं और जब हृदय में भावनाओं का उद्दाम वेग उमड़ने लगता है तो उनकी लेखनी से छन्द फूटने लगते हैं। तात्पर्य यह है कि जब उनकी बुद्धि हृदय पर हावी
SR No.009446
Book TitleBikhare Moti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla, Yashpal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2001
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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