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________________ आचार्य अमृतचन्द्र आश्चर्य तो यह है कि उनके बाद भी आचार्य जयसेन को छोड़कर और किसी की इन ग्रन्थों पर कलम चलाने की हिम्मत नहीं हुई। जयसेनीय टीकायें भी अमृतचन्द्रीय टीकाओं से उपकृत हैं और अपनी सरलता के कारण कालकवलित होने से बच गईं। आज हम कुन्दकुन्द वाणी के मर्म तक पहुँचने के लिए आचार्य अमृतचन्द्र और आचार्य जयसेन पर आधारित हैं। कुन्दकुन्द और अमृतचन्द्र के अध्यात्म को जन-जन तक पहुँचाने के और भी अनेक प्रयास हुए हैं, जिनमें पाण्डे राजमलजी की कलश टीका, कविवर बनारसीदास का नाटक समयसार और पण्डित जयचन्द्रजी छाबड़ा की भाषा टीका आदि प्रमुख हैं, किन्तु ईसवीं की बीसवीं सदी में जो सबसे सशक्त प्रयास हुआ है, वह है आध्यात्मिकसत्पुरुष कानजीस्वामी की आध्यात्मिक क्रान्ति का, जिसने एक आन्दोलन का रूप ले लिया है और आज कुन्दकुन्द और अमृतचन्द्र को घर-घर में पहुँचा दिया है, जन-जन की वस्तु बना दिया है। पण्डित टोडरमलजी की दृष्टि में आत्मख्याति अध्यात्म की सर्वोत्कृष्ट कृति है। उसके अध्ययन की प्रेरणा देते हुए वे रहस्यपूर्ण चिट्ठी में मुलतानवाले भाइयों को लिखते हैं p " वर्तमानकाल में अध्यात्मतत्त्व तो आत्मख्याति समयसार ग्रन्थ की अमृतचन्द्र आचार्यकृत संस्कृत टीका में है और आगम की चर्चा गोम्मटसार में है तथा और अन्य ग्रन्थों में है। जो जानते हैं, वह सब लिखने में आवे नहीं, इसलिए तुम भी अध्यात्म तथा आगम ग्रन्थों का अभ्यास रखना और स्वरूपानन्द में मग्न रहना । " — देखो, टोडरमलजी ने मूल समयसार का नाम न लेकर आत्मख्याति का नाम लिया। इससे प्रतीत होता है कि उनकी दृष्टि में आत्मख्याति समयसार से भी महान है। वस्तुत: बात यह है कि समयसार की टीका होने से आत्मख्याति का अध्ययन करने पर समयसार का अध्ययन तो होगा ही । दार्शनिक विषयवस्तु के विश्लेषण में तर्क और युक्तियों की प्रधानता रहती है। तर्क और युक्तियों के भार को गद्य ही बर्दाश्त कर पाता है। यही कारण है
SR No.009446
Book TitleBikhare Moti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla, Yashpal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2001
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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