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________________ (१३ सरस्वती के वरद पुत्र (सिद्धान्ताचार्य पण्डित फूलचन्द शास्त्री अभिनन्दन - ग्रन्थ से ) धवलादि महाग्रन्थों के यशस्वी संपादक, करणानुयोग के प्रकाण्ड पण्डित, सिद्धान्ताचार्य पदवी से विभूषित सिद्धान्ताचार्य पंडित फूलचंदजी शास्त्री उन गिने-चुने विद्वानों में से हैं, जिन्होंने टूट जाने की कीमत पर भी कभी झुकना नहीं जाना। संघर्षों के बीच बीता उनका जीवन एक खुली पुस्तक के समान है, जिसके प्रत्येक पृष्ठ पर उनके संघर्षशील अडिग व्यक्तित्व की अमिट छाप है। रणभेरी बजने पर स्वाभिमानी राजपूत का बैठे रहना जिसप्रकार संभव नहीं रहता, उसीप्रकार अवसर आनेपर किसी भी चुनौती को अस्वीकार करना छात्र तेज के धनी पण्डित फूलचन्दजी को कभी संभव नहीं रहा । कठिन से कठिन चुनौती को सहज स्वीकार कर लेना, उनकी स्वभावगत विशेषता रही है । चुनौतियों से जूझने की अद्भुत क्षमता भी उनमें है । 'खानियाँ तत्त्वचर्चा' उनकी इसी स्वभावगत विशेषता का सुपरिणाम है, जो अपने आप में एक अद्भुत ऐतिहासिक वस्तु बन गई है। पूज्य गुरुदेव श्रीकानजी स्वामी की आध्यात्मिक क्रान्ति के धवल इतिहास में पण्डितजी की 'खानियाँ तत्त्वचर्चा' एवं जैनतत्त्वमीमांसा' एक कीर्तिस्तंभ के रूप सदा ही स्मरण की जाती रहेंगी । - मोटी खादी की धोती, कुर्ता और टोपी में लिपटा साधारण-सा दिखनेवाला उनका असाधारण व्यक्तित्व प्रथम दर्शन में भले ही साधारण लगे, पर निकट सम्पर्क होने के साथ-साथ उनके व्यक्तित्व की दृढ़ता और दृढ़ संकल्प का परिचय सहज ही होने लगता है 1
SR No.009446
Book TitleBikhare Moti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla, Yashpal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2001
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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