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गोली का जवाब गाली से भी नहीं
( नागपुर में जिनवाणी के अपमान होने पर उत्तेजित मुमुक्षु समाज के समक्ष २८ एवं २९ दिसम्बर १९८७ को दिये गये डॉक्टर भारिल्ल के ये व्याख्यान उनकी भावना, रीति-नीति और सामाजिक संदर्भ में उनके विचारों को व्यक्त करते हैं। इनके कैसेट भी उपलब्ध हैं । सम्पादक)
प्रथम दिन
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यदि आपने जीवनभर समयसार का स्वाध्याय किया है तो समझ लीजिये कि आज उसकी परीक्षा की घड़ी आ गई है। यदि आप लोगों का थोड़ा-बहुत भी विश्वास हम पर है तो आप यह सोचिए कि हम कोई चुप नहीं बैठे हैं, शान्त नहीं बैठे हैं। जितनी पीड़ा आपके हृदय में है, उससे कहीं ज्यादा पीड़ा हमारे हृदय में भी है। आप तो इसको (जिनवाणी को ) पढ़ते ही हैं, परन्तु हम तो इसे पढ़ते भी हैं, पढ़ाते भी हैं और छपाते भी हैं; एक-एक अक्षर का प्रूफरीडिंग भी करते हैं । हमारा तो सारा जीवन इसी से जुड़ा हुआ है। विवेक के खो देने से तो कोई काम दुनिया में सफल नहीं होता है । जब भी कोई ऐसा प्रसंग हमारे सामने उपस्थित हो तो हमें ऐसे प्रसंगों में हमारे पूर्वजों ने जैसा आचरण किया था, वैसा ही आचरण हमको भी करना चाहिए ।
सुबह तक की स्थिति में और अभी की स्थिति में बहुत बड़ा परिवर्तन हो गया है। उत्तेजना का वातावरण सुबह तक दूसरे पक्ष में था; यह घटना घट जाने से अब हमारे प्रत्येक मुमुक्षु भाई का हृदय आंदोलित हो गया है; इसलिए हमें अब शांति की जितनी आवश्यकता है; उतनी आवश्यकता शायद इसके पहले नहीं थी । हम शांत चित्त से कम से कम यह सोच तो सके कि ऐसी घटनाओं का सामना करने के लिए हमें कौन-सा मार्ग चुनना चाहिए; जो हमारी