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एक ही रास्ता
157 ___ सम्पूर्ण देश और विदेश में रहनेवाले सभी आत्मार्थी मुमुक्षु भाइयों को इस कार्य के लिए तैयार रहना चाहिए। हम अपने इस आन्दोलन की विस्तृत रूपरेखा व कार्यक्रम यथासमय सब तक पहुँचायेंगे। यदि कुछ लोगों पर हमारे इस पवित्र आह्वान का असर न भी पड़े, तब भी दुष्काल में हमारी प्रार्थनाएँ और उपवास हमारे चित्त को तो शान्त रखेंगे ही, जिससे प्रतिक्रिया में होनेवाली प्रतिहिंसा से तो हम बचे ही रहेंगे। __ दो-चार शास्त्रों के जलाने या पानी में बहाने से हम समाप्त नहीं हो जावेंगे, हम उसके बदले में उनकी पुस्तकों को जलाने के स्थान पर हजारों प्रतियाँ और अधिक छपाने के प्रयास में लगेंगे। यदि जिनवाणी के जलप्रवाह से हम अपने बन्धुओं को विरत करना चाहते हैं तो मात्र इस भावना से ही कि वे इस पाप के फल से बचे रहें; क्योंकि जिनवाणी तो हम और भी छपा लेंगे पर हमारे ही साधर्मी भाइयों को जो फल भोगना होगा, उसकी बात सोचकर हमारा हृदय काँप जाता है। ___ अधिक क्या लिखू ? शीघ्रातिशीघ्र इन विकल्पों से विरत हो, आत्माराधना एवं जिनवाणी की सेवा में निर्विघ्न संलग्न हो जाऊँ – इस पावन भावना से विराम लेता हू। ॐ शान्तिः, शान्तिः, शान्तिः।
जहाँ विवेक है, वहाँ आनन्द है, निर्माण है; और जहाँ अविवेक है वहाँ कलह है, विनाश है । समय तो एक ही होता है, पर जिस समय अविवेकी निरन्तर षड्यन्त्रों में संलग्न रह बहुमूल्य नरभव को यों ही बरबाद कर रहे होते हैं; उसी समय विवेकीजन अमूल्य मानव भव का एक-एक क्षण सत्य के अन्वेषण, रमण एवं प्रतिपादन द्वारा स्व-पर हित में संलग्न रह सार्थक व सफल करते रहते हैं। वे स्वयं तो आनन्दित रहते ही हैं, आसपास के वातावरण को भी आनन्दित कर देते हैं। ___ इसप्रकार क्षेत्र और काल एक होने पर भी भावों की विभिन्नता आनन्द और क्लेश तथा निर्माण और विध्वंस का कारण बनती है। यह सब विवेक और अविवेक का ही खेल है।
सत्य की खोज, पृष्ठ १९९