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________________ बिखरे मोती वर्तमान क्षुब्ध वातावरण देखकर मुमुक्षु भाइयों में भी घबड़ाहट है, वे भी इस असमंजस में हैं कि इस स्थिति में हम क्या करें, क्या न करें ? हमसे वात्सल्य और अपेक्षा रखनेवाले आत्मार्थी मुमुक्षुभाई भी हमारी ओर टकटकी लगाकर देख रहे हैं कि वर्तमान स्थिति में हम क्या करते हैं, कौन सा रास्ता चुनते हैं ? 156 ऐसी स्थिति में बहुत कुछ चाहने पर भी चुप रहना संभव नहीं हो पा रहा है। सागर शिविर के बाद लगभग डेढ़ माह के लिए धर्मप्रचारार्थ विदेश भी जाना है । अत: इस समय संपूर्ण स्थिति को स्पष्ट करना अति आवश्यक हो गया है। उक्त सम्पूर्ण विश्लेषण के उपरान्त मूल प्रश्न तो खड़ा ही है कि यदि विघटनवादियों के मंसूबे सफल हो गये और समाज में स्थान-स्थान पर संघर्ष उत्पन्न हो गया तो हम क्या करेंगे और हमें क्या करना चाहिए ? भाई, मेरा विश्वास है कि ऐसा नहीं होगा, दो-एक छुटपुट घटनाओं को छोड़कर विशाल स्तर पर शान्तिप्रिय अहिंसक समाज ऐसा कभी नहीं होने देगी। दिगम्बर जैन समाज में एकता और शान्ति कायम रहे यह दिगम्बर जैन महासमिति का दायित्व है और वह अपने दायित्व के प्रति पूर्ण सजग भी है। इसलिए चिन्ता का कोई कारण नहीं है । हमारे पवित्र हृदय से किए गये इस अनुरोध को सम्पूर्ण समाज पवित्र हृदय से ही ग्रहण करेगा, ऐसा हमारा विश्वास है; फिर भी यदि कुछ हुआ तो हमारे पास एक ही रास्ता शेष रह जाता है कि हम महात्मा गाँधी के बताये रास्ते पर चलकर आत्मशुद्धि के लिए सामूहिक उपवास करें, गाँव-गाँव में शान्ति के लिए प्रार्थनाएँ करें। मुझे विश्वास है कि सच्चे हृदय से की गई हमारी प्रार्थनाएँ एवं आत्मशुद्धि के लिए किए गये हमारे सामूहिक उपवास व्यर्थ न जायेंगे। आत्मशुद्धि की कमी के कारण सच्चे हृदय से भी दी गई आवाज में वह शक्ति नहीं होती कि जिसे सभी लोग सुन सकें, स्वीकार कर सकें। जब हम उपवास द्वारा आत्मशुद्धि प्राप्त कर निष्कषायभाव से शान्ति के लिए अपनी आवाज बुलन्द करेंगे तो वह आवाज अवश्य सुनी जावेगी, हमारी प्रार्थनाएँ और उपवास व्यर्थ न जावेंगे।
SR No.009446
Book TitleBikhare Moti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla, Yashpal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2001
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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