________________
155
एक ही रास्ता आश्चर्य होगा कि श्री टोडरमल स्मारक भवन के मन्दिर पर भी कोई ऐसा कागजी बोर्ड लगा गया । क्या होनेवाला है - इस सबसे ? जहाँ लाखों रुपयों का वहीं साहित्य रखा हो, जहाँ से सारे देश में वह साहित्य जा रहा हो, वहाँ लगा यह कागजी बोर्ड स्वयं ही हास्यास्पद नहीं लगता है क्या? कई स्थानों पर पता करने पर, पता चला है कि वहाँ भी वैसे ही बिना अनुमति एवं जानकारी के कागजी बोर्ड लगा दिए हैं। इससे पता चलता है कि लगभग सभी जगह यही स्थिति है – ऐसे कागजी घोड़े दौड़ाने से क्या होनेवाला है, सिवाय वातावरण विक्षुब्ध होने के ? __ हमारी स्थिति आज बड़ी ही विचित्र हो रही है। सोनगढ़ वाले कहते हैं कि जो भी विरोध हो रहा है, वह सब हम ही करा रहे हैं, शेष समाज को कुछ पड़ी ही नहीं है। विरोध करनेवाले भी निरन्तर आरोप लगा रहे हैं कि हम सोनगढ़ वालों से मिले हुए हैं, इसीकारण डटकर विरोध नहीं कर रहे हैं। ___ हम सच्चे हृदय से दोनों को बता देना चाहते हैं कि हम दूसरों के कंधों से गोली चलाना नहीं जानते, न कभी चलाने का प्रयास ही करते हैं । हमें जो कुछ भी कहना होता है, या करना होता है; सब एकदम स्पष्ट कहते हैं, खुलकर करते हैं। इस सन्दर्भ में भी हमने जो किया है, वह खुलकर किया है, इससे अधिक न हम कुछ कर सकते हैं, न करना चाहते हैं।
सूर्यकीर्ति की प्रतिमा की प्रतिष्ठा के नाम पर आगम के आधार बिना जो भी हुआ है, हम उसे रंचमात्र भी उचित नहीं मानते, पर पूज्य स्वामीजी का इसमें कोई योग नहीं है, क्योंकि भोगीभाई द्वारा इसप्रकार की चर्चा आने पर उन्होंने बड़ी ही दृढ़ता से इसका निषेध कर दिया था। इस बात को श्री नेमीचंदजी पाटनी जैनपथ प्रदर्शक में पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं। यह बात भी समझ लीजिए कि हम उनके सच्चे अनुयायी हैं। हमने उनसे वीतरागी तत्त्व पाया है, क्रमबद्धपर्याय का पाठ पढ़ा है, उनकी उपेक्षा हमसे संभव नहीं है, उनका अपमान हमें बर्दाश्त नहीं है और न कभी होगा ही।
स्वामीजी के देहावासान के बाद सोनगढ़ में हुए गलत कार्यों में हमारी रंचमात्र भी अनुमोदना नहीं है और न हम उनके प्रति रंचमात्र भी जिम्मेदार हैं।