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बिखरे मोती भूमिका में हम और आप विद्यमान हैं, उसमें यह सब संभव नहीं है, उचित भी नहीं है, आवश्यक भी नहीं है। ___ हमारे ही साथियों की अपरिमित हठधर्मी से जो स्थिति आज पैदा हो गई है, उससे आज सम्पूर्ण समाज उद्वेलित है, आन्दोलित है। सम्पूर्ण दिगम्बर जैन समाज की इस पीड़ा से आज कोई भी अपरिचित नहीं है। हमारी स्थिति तो और भी अधिक गंभीर है; क्योंकि इस घटनाचक्र के सम्पूर्णतः अकर्ता होने पर भी हमें इस तूफान का केन्द्रबिन्दु-सा बना दिया गया है। जिन्हें आगम के आधार, सामाजिक एकता एवं पूज्य श्री कानजी स्वामी की पावन प्रतिष्ठा की कोई चिन्ता नहीं है; वे लोग समग्र समाज की सहानुभूति एवं स्नेह खोकर भी अपने में ही मग्न है एवं विजयी मुद्रा में जो कुछ भी मन में आ रहा है, बिना सोचे-समझे निरन्तर किये जा रहे हैं और स्वामीजी के व्यक्तित्व से ईर्ष्या करने वाले लोगों को निरन्तर ऐसी निराधार सामग्री प्रदान कर रहे हैं कि जिससे उन्हें उत्तेजना फैलाने में भरपूर मदद मिल रही है।
ऐसी स्थिति में इस उत्तेजित वातावरण में जगत से दृष्टि हटाकर अपने कार्य में ही मग्न हो जाने के हमारे सम्पूर्ण संकल्प एवं निश्चय डगमगा रहे हैं। चारों
ओर से हमारे पास अपनी स्थिति स्पष्ट कर देने के लिए आग्रह, अनुरोध आ रहे हैं। पर भाई साहब! हमारी स्थिति तो स्पष्ट ही है। इस समय घटनाचक्र से परिचित ऐसा कौन व्यक्ति है जो हमारी स्थिति एवं विचारों से अपिरचित है? वस्तुतः बात स्थिति स्पष्ट करने की नहीं, समाज चाहता है कि हम इस दिशा में सम्पूर्णत: सक्रिय हों। ___पर भाई, हम क्या करें? क्या आप यह समझते हैं कि बात यहाँ तक न पहुँचे - इसके लिए हमने कोई कम प्रयत्न किए हैं; पर जब कोई आत्मघात करने पर ही उतारू हो जाय तो हम क्या कर सकते थे? बहुत भाई कहते हैं कि हमारे साथियों को त्याग-पत्र नहीं देना चाहिए था, हमें अदालत में जाना चाहिए था, सत्याग्रह करना चाहिए था। पर भाई साहब! हमने अपना जीवन अध्यात्म के लिए समर्पित किया है, झगड़ा-झंझटों के लिए नहीं।