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________________ १३ एक ही रास्ता ( वीतराग - विज्ञान जून १९८५ में से ) " मर्ज बढ़ता ही गया, ज्यों-ज्यों दवा की " – किसी भुक्तभोगी की उक्त उक्ति का मर्म तबतक समझ में नहीं आता, जबतक कि इसीप्रकार की परिस्थितियों से व्यक्ति स्वयं नहीं गुजरता । आगम के सम्मान एवं सामाजिक एकता की अनदेखी करने वाले लोग जब घर- फूँक तमाशा देखने पर उतारू हो जाते हैं तो अड़ोसी - पड़ौसी भी उस आग में स्वार्थ की रोटियाँ सेकने लगते हैं। केवल व्यक्तिगत स्वार्थ की सिद्धि के लिए मौके की तलाश में बैठे असामाजिक तत्त्व जब उस आग को बुझाने के बहाने पानी के नाम पर जलते हुए सामाजिक ढांचे पर पेट्रोल डालने लगते हैं, तब समझदार लोगों के पास आत्मशुद्धि के लिए प्रभु से प्रार्थना एवं आत्माराधना के अतिरिक्त कोई मार्ग शेष नहीं रह जाता है । समाज के प्रबुद्धवर्ग का कार्य गहराई में जाकर वस्तुस्थिति का गहरा अध्ययन करके यथासाध्य सम्यक् मार्गदर्शन करना है, पर जब प्रबुद्धवर्ग भी अपने इस उत्तरदायित्व से विमुख होने लगे और समाज में उत्तेजना फैलाने का घृणित कार्य करने लगे तो समझना चाहिए कि अब समाज के बुरे दिन आने वाले हैं। ऐसी स्थिति में चित्त का संतुलन बनाए रखना यद्यपि अत्यन्त कठिन कार्य है, तथापि सन्तुलन खोकर सर्व विनाश की ओर बढ़ना बुद्धिमत्ता तो नहीं माना जा सकता । यद्यपि जलती हुई द्वारका देखकर भी श्री नेमिनाथ के समान, सहज ज्ञातादृष्टा बने रहना ही अध्यात्म की चरम उपलब्धि है; तथापि जिस
SR No.009446
Book TitleBikhare Moti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla, Yashpal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2001
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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