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बिखरे मोती अत्यन्त निकट होने से हमारे इस शिविर में भी अवश्य पधारेंगे। इसीप्रकार स्थानीय विद्वान होने से डॉ. पन्नालालजी साहित्याचार्य का समागम भी सहज प्राप्त होगा। वयोवृद्ध व्रती विद्वान पंडित जगन्मोहनलालजी शास्त्री कटनी एवं सिद्धान्ताचार्य पंडित फूलचन्दजी तो हमारे शिविरों में कई बार पधार चुके हैं। ___ हमारे शिविर में दिगम्बर जैन महासमिति के संस्थापक अध्यक्ष स्व. श्री साहू
शान्तिप्रसादजी और वर्तमान अध्यक्ष श्री साहू श्रेयांशप्रसादजी, कार्याध्यक्ष श्री रतनलालजी गंगवाल, महामन्त्री श्री सुकुमारचन्दजी, दि. जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी के अध्यक्ष श्री लालचन्दजी, महामन्त्री श्री जयचन्दजी लोहाड़े तथा श्री एम. के. गाँधी लन्दन, श्री ऋषभकुमारजी खुरई, सि. धन्यकुमारजी कटनी आदि अनेक बार पधारकर हमारी शिक्षण पद्धति की भरपूर सराहना कर चुके हैं; समाज के सभी वर्गों का सहयोग हमारे शिविरों को प्राप्त रहा है।
इसप्रकार हम देखते हैं कि हमारा यह शिविर एक ऐतिहासिक शिविर होगा और इसका लाभ हमारी आगामी पीढ़ियों को भी भरपूर प्राप्त रहेगा। ___ मेरी जन्मभूमि के निकट लगनेवाला यह शिविर वीतरागी तत्त्वज्ञान एवं सदाचारी जीवन की गहरी नींव डालनेवाला प्रमाणित हो – ऐसी मंगल भावना के साथ विराम लेता हूँ।
एक बात और भी तो है कि सुखी होने का सही रास्ता सत्य पाना है, सत्य समझना है। किसी का भंडाफोड़ करना नहीं, किसी की पोल खोलना नहीं । यदि इस एक साधु की पोल खोल भी दी तो क्या हो जाने वाला है, न जाने लोक में ऐसे कितने लोग हैं? तुम कहाँ-कहाँ पहुँचोगी, किस-किस को बचाओगी? सच्चे देव-शास्त्र-गुरु का सही स्वरूप समझना ही कुगुरु, कुदेव, कुशास्त्र से बचने का सच्चा उपाय है।
सामान्यत: देव-गुरु-धर्म का विरोध करना भी तो ठीक नहीं; क्योंकि इससे तो सच्चे देव-गुरु-धर्म का भी निषेध हो सकता है। अतः शास्त्राधार से इनका सही स्वरूप समझने का यत्ल करना चाहिए।
सत्य की खोज, पृष्ठ ६३