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________________ सागर प्रशिक्षण शिविर 147 हमारा सहयोग चाहेंगे तो हम उन्हें अपनी सीमाओं में रहकर अवश्य सहयोग करेंगे। __ भाई, आज की दुनिया संघर्ष की नहीं, सहयोग की दुनिया है। जब एक देश दूसरे देश के विकास में तकनीकी, आर्थिक, बौद्धिक आदि सभी प्रकार का सहयोग करते देखे जाते हैं तो क्या धर्म के क्षेत्र में यह संभव नहीं है। यदि हमने समय को नहीं पहिचाना, युग की आवाज की अनसुनी कर दी तो समय हमें कभी क्षमा नहीं करेगा।जो युग की आवाज को समय की पुकार को सुनता है, उसके अनुसार चलता है, समय उसका ही साथ देता है। आशा ही नहीं, हमें पूर्ण विश्वास है कि धार्मिक समाज पवित्र हृदय से किये गये हमारे इस अनुरोध को पवित्र हृदय से ही गृहण करेगा। ___हमें प्रसन्नता है कि धार्मिक शिक्षा की इस युग में नींव डालने वाले वर्णीजी के इस शिक्षानगर सागर में ही धार्मिक शिक्षा को गति प्रदान करने वाला हमारा यह उन्नीसवाँ शिक्षण-प्रशिक्षण शिविर लग रहा है। ध्यान रहे, बुन्देलखण्ड की पावन भूमि में यह शिविर ललितपुर में सन् १९७६ में लगे शिविर के नौ वर्ष बाद लग रहा है। वर्तमान परिप्रेक्ष्य की जिस भाव-भूमि में यह शिविर लग रहा है, उससे इसका महत्व और अधिक बढ़ जाता है। कई दृष्टियों से यह शिविर ऐतिहासिक शिविर हो सकता है। इस शिविर की भावभूमि में एक और भी सहज संयोग बन रहा है। सागर के अत्यन्त निकट खुरई में इसी समय आचार्य श्री विद्यासागरजी के सान्निध्य में 'धवला' की वाचना का कार्यक्रम होने जा रहा है। इसका सबसे बड़ा लाभ यह होगा कि वाचना में पधारे विद्वानों का लाभ शिविर को तथा शिविरार्थियों को आगे-पीछे थोड़ा-बहुत वाचना का लाभ भी प्राप्त हो सकेगा। पण्डित कैलाशचन्दजी सिद्धान्ताचार्य, वाराणसी का आशीर्वाद हमारी सम्पूर्ण गतिविधियों को आरंभ से ही प्राप्त होता रहा है, पर गर्मियों में लगने के कारण वे आज तक हमारे इस शिविर में नहीं पधार सके । अब उनके समागम एवं मार्गदर्शन का लाभ भी हमें प्राप्त होगा; क्योंकि वे जब खुरई में पधारेंगे तो
SR No.009446
Book TitleBikhare Moti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla, Yashpal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2001
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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