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________________ 146 बिखरे मोती इन शिविरों की लोकप्रियता का प्रत्यक्ष प्रमाण यह है कि हमारे इन शिविरों से प्रेरणा पाकर अन्य संस्थायें भी शिविर आयोजित करने लगी हैं। इस बात की हमें हार्दिक प्रसन्नता है, क्योंकि यह काम इतना बड़ा है कि इसमें जितने भी लोग जुट जायें, उतने ही कम हैं। सबकुछ मिलाकर सभी लोग वीतरागी वाणी का ही तो प्रचार-प्रसार करते हैं। __णमोकार मंत्र कोई भी सिखाये – इससे क्या अन्तर पड़ता है ? भाई, हम सब को मिलकर अज्ञान के विरुद्ध लड़ना है, असंयम के विरुद्ध लड़ना है, दुराचार के विरुद्ध लड़ना है। जो भी धार्मिक क्षेत्र में कार्य करनेवाले लोग हैं, उन्हें परस्पर में लड़ने के स्थान पर मिलकर अज्ञान से, अशिक्षा से लड़ना चाहिये। इसमें ही समाज का भला है, संस्थाओं का भला है, धर्म का भला है और व्यक्तियों का भी भला इसी में है। __ आश्चर्य इस बात का है कि हमारे प्रशिक्षण-शिविरों की लोकप्रियता का लाभ उठाने के लिए कुछ लोग अपने सामान्य शिविरों का नाम भी प्रशिक्षण शिविर रख लेते हैं, जब कि उनमें प्रशिक्षण (Training) नाम की कोई चीज ही नहीं होती। यद्यपि हमें उनकी प्रवृत्ति से कोई विरोध नहीं है, तथापि इससे प्रशिक्षण शब्द की सार्थकता तो समाप्त होती ही है। इसका एक कारण भी यह है कि वे लोग हमारे शिवरों की लोकप्रियता से प्रभावित होकर उसे देखने आते हैं और दो-एक दिन ठहरकर उद्घाटनादि उत्सवों एवं प्रवचनादि कार्यक्रमों को देखकर चले जाते हैं। उसमें जो शिक्षणप्रशिक्षण के सघन कार्यक्रम चलते हैं, उन्होंने गहराई से नहीं देखते। अत: वे यही समझते हैं कि शिविरों में अकेले प्रवचन होते हैं। ___ यह भी हो सकता है कि वे हमारे शिविर की सम्पूर्ण गतिविधियों से परिचित तो हों, पर अत्यधिक श्रमसाध्य होने से अथवा उन्हें चलाने योग्य सुयोग्य कार्यकर्ताओं के अभाव होने से यह सब संभव न हो पाता हो। जो कुछ भी हो, हम उन्हें अपने सम्पूर्ण कार्यक्रमों को बारीकी से निरीक्षण करने के लिये सादर, सस्नेह, सानुरोध आमंत्रित करते हैं और उन्हें विश्वास दिलाते हैं कि यदि वे भी इसप्रकार के शिविरादि कार्यक्रम संचालित करने में
SR No.009446
Book TitleBikhare Moti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla, Yashpal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2001
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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